धर्मशाला, 2 जुलाई 2025/
तिब्बत के निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने आज यह स्पष्ट कर दिया कि उनके निधन के बाद भी दलाई लामा संस्था का अस्तित्व बना रहेगा। यह घोषणा दुनिया भर में फैले बौद्ध अनुयायियों के लिए एक ऐतिहासिक और आश्वस्त करने वाला क्षण है, जो दलाई लामा को अहिंसा, करुणा और तिब्बती पहचान के प्रतीक के रूप में देखते हैं।
90वें जन्मदिवस (6 जुलाई) से पहले धर्मशाला में आयोजित एक धार्मिक सम्मलेन में वीडियो संदेश के माध्यम से उन्होंने कहा, “मैं यह पुष्टि करता हूं कि दलाई लामा का संस्थान आगे भी जारी रहेगा।” उन्होंने बताया कि उन्हें तिब्बत, हिमालयी क्षेत्र, मंगोलिया, रूस और चीन से लगातार आग्रह प्राप्त हुए हैं कि यह परंपरा जारी रहनी चाहिए।
“उत्तराधिकारी की पहचान का अधिकार सिर्फ गदेन फोडरंग ट्रस्ट को”
दलाई लामा ने यह भी साफ कर दिया कि 15वें दलाई लामा की पहचान करने की जिम्मेदारी सिर्फ गदेन फोडरंग ट्रस्ट की होगी। उन्होंने कहा, “मैं पुनः यह दोहराता हूं कि गदेन फोडरंग ट्रस्ट को ही इस विषय में अधिकार प्राप्त है, और कोई अन्य संस्था या सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती।”
चीन की भूमिका को खारिज करने का संदेश
दलाई लामा की इस घोषणा को चीन के उन प्रयासों पर प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया माना जा रहा है, जिसमें वह भविष्य में अपने अनुसार उत्तराधिकारी घोषित कर सकता है। तिब्बती कार्यकर्ता चेमी ल्हामो ने इस कदम को चीन को स्पष्ट संदेश बताते हुए कहा, “यह घोषणा बीजिंग को यह जताने के लिए है कि उनके पास किसी उत्तराधिकारी को तय करने का कोई अधिकार नहीं है।”
1959 से भारत में निर्वासित जीवन
दलाई लामा 1959 में तिब्बत में चीन द्वारा किए गए दमन के बाद से भारत के धर्मशाला में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने 2011 में राजनीतिक जिम्मेदारी निर्वासित तिब्बती सरकार को सौंप दी थी।
इस निर्णय को तिब्बती समुदाय के लिए एक सांस्कृतिक सुरक्षा कवच माना जा रहा है, जिससे उनकी धार्मिक पहचान, परंपरा और स्वतंत्रता की भावना को बल मिलेगा।
