छत्तीसगढ़: रायगढ़ में कोयला खनन के लिए 5,000 पेड़ों की कटाई, विरोध कर रहे आदिवासी हिरासत में

रायपुर, 28 जून 2025: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के तमनार तहसील स्थित मुढ़ागांव और सरईटोला गांवों में 26 और 27 जून को 5,000 से अधिक पेड़ काटे गए। यह कार्रवाई गारे-पलमा सेक्टर-2 कोल ब्लॉक में कोयला खदान परियोजना के लिए की गई, जिसे अडानी ग्रुप द्वारा महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड (MAHAGENCO) के लिए संचालित किया जाना है।

प्रदर्शन के बीच भारी पुलिस बल की तैनाती

स्थानीय सूत्रों के अनुसार, 26 जून की सुबह से ही पुलिस और वन विभाग के अधिकारियों के साथ अडानी समूह के कर्मचारी जंगल में पहुंचे और पेड़ों की कटाई शुरू कर दी। इस दौरान करीब 2,000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। सात प्रदर्शनकारियों, जिनमें स्थानीय कांग्रेस विधायक विद्या वती सिदार, लेखिका व कार्यकर्ता रिनछिन, और तीन महिलाएं शामिल थीं, को बिना किसी कानूनी कारण बताए दिनभर के लिए हिरासत में लिया गया

जबरन काटे जा रहे पेड़, विरोध जारी

स्थानीय ग्रामसभाओं और ग्रामीणों ने 2017 से इस परियोजना का विरोध किया है। इनका कहना है कि परियोजना से करीब 1,700 परिवार विस्थापित होंगे और 2,584 हेक्टेयर भूमि, जिसमें 215 हेक्टेयर वन भूमि भी शामिल है, अधिग्रहित की जाएगी। यह भूमि सामुदायिक वनाधिकार कानून (Forest Rights Act, 2006) के तहत आती है, जिसे ग्रामसभा की अनुमति के बिना अधिग्रहित नहीं किया जा सकता

एनजीटी ने पहले किया था पर्यावरण मंजूरी को रद्द

जनवरी 2024 में एनजीटी (राष्ट्रीय हरित अधिकरण) ने परियोजना की पर्यावरण मंजूरी रद्द कर दी थी। एनजीटी ने कहा कि जनसुनवाई में विरोध को रिकॉर्ड नहीं किया गया, ICMR की स्वास्थ्य रिपोर्ट को नजरअंदाज किया गया, और केलो नदी के जलग्रहण क्षेत्र पर पर्यावरणीय प्रभावों का सही मूल्यांकन नहीं हुआ।

हालांकि, जुलाई 2022 की रद्द मंजूरी के बाद भी अगस्त 2024 में पर्यावरण मंत्रालय ने उसी जनसुनवाई के आधार पर दोबारा मंजूरी दे दी, जिसे लेकर पुनः एनजीटी में याचिका दायर की गई है और मामला अब भी लंबित है।

अडानी समूह बना खदान का ऑपरेटर

यह खदान 655 मिलियन मीट्रिक टन कोयला उत्पन्न करेगी, जिसका उपयोग महाराष्ट्र के चंद्रपुर, कोराडी और परली स्थित थर्मल पावर प्लांट्स में किया जाएगा। इसमें ओपन कास्ट माइनिंग भी शामिल है, जो पर्यावरणीय प्रदूषण के लिए कुख्यात है।

स्थानीय लोगों की पीड़ा

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि ये जंगल उनके पूर्वजों की विरासत हैं और उनकी जीविका का स्रोत हैं। “हमें जंगल नहीं छोड़ना है, यही हमारा जीवन है,” एक स्थानीय महिला ने बताया, जो कटे हुए पेड़ों के पास पेड़ के नए पौधे लगाती नजर आईं।