रायपुर, 28 जून 2025: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 15 साल पुराने ड्रग्स केस में आरोपी को पुख्ता सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। आरोपी विष्णु कुमार सोनी के घर से 165 किलो गांजा बरामद होने के बाद NDPS एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ था। हालांकि, हाईकोर्ट ने स्पेशल कोर्ट द्वारा 2011 में दिए गए बरी किए जाने के फैसले को सही ठहराया है।
हाईकोर्ट की जस्टिस संजय एस. अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा कि जब्ती की प्रक्रिया में कई खामियां थीं, और अधिकतर गवाह अपने बयान से मुकर गए थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल संदेह के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।
क्या था पूरा मामला?
22 मार्च 2010 को बलौदा थाने के सब-इंस्पेक्टर डीएल मिश्रा को सूचना मिली कि विष्णु कुमार सोनी के घर पर बड़ी मात्रा में गांजा है। पुलिस ने छापा मारकर 8 बोरियों में 165 किलो गांजा, ₹15,240 नकद, और एक इलेक्ट्रॉनिक कांटा जब्त किया। इसके आधार पर NDPS एक्ट की धारा 20(बी)(2)(सी) के तहत मामला दर्ज हुआ।
स्पेशल कोर्ट ने पहले ही किया था दोषमुक्त
5 मार्च 2011 को स्पेशल कोर्ट ने सबूतों के अभाव और गवाहों के बयान से मुकरने के आधार पर आरोपी को दोषमुक्त कर दिया था। पुलिस की कहानी को अदालत में खारिज कर दिया गया। पंचनामा में भी कई गड़बड़ियां सामने आई थीं।
हाईकोर्ट ने विशेष न्यायालय के फैसले को माना सही
अब हाईकोर्ट ने भी माना कि मूल्यांकन में भारी चूक हुई थी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि पुलिस की कार्यवाही में पारदर्शिता का अभाव, प्रक्रियागत कमियां, और गवाहों के विरोधाभासी बयान किसी भी व्यक्ति को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
न्यायालय की टिप्पणी
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा: “सिर्फ शक के आधार पर किसी को दोषी ठहराना कानून के सिद्धांतों के खिलाफ है। जब तक सबूत ठोस और निष्कलंक न हों, तब तक दोष सिद्ध नहीं माना जा सकता।”
