छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फैसला: जांच अधिकारी गवाहों से पूछताछ कर सकता है

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि विभागीय जांच के दौरान जांच अधिकारी गवाहों से पूछताछ कर सकता है और स्पष्टीकरण मांग सकता है, और यह कार्यवाही को अवैध नहीं बनाता।

यह फैसला एक पुलिस कांस्टेबल की याचिका पर आया, जिसे भ्रष्ट आचरण और ड्यूटी में लापरवाही के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। आरोप था कि कांस्टेबल ने 6 फरवरी 2009 को गांव खोराटोला में एक व्यक्ति को कमरे में बंद कर ₹5,000 की रिश्वत मांगी थी और ड्यूटी से अनुपस्थित रहा।

विभागीय जांच में आरोप सिद्ध पाए गए और 30 जनवरी 2010 को कांस्टेबल को सेवा से हटाया गया। अपील और दया याचिका दोनों खारिज हो जाने के बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। एकलपीठ द्वारा 14 फरवरी 2024 को याचिका खारिज किए जाने के बाद उसने डिवीजन बेंच में अपील की।

याचिकाकर्ता का तर्क था कि जांच अधिकारी ने पूछताछ कर अभियोजन की भूमिका निभाई, जिससे जांच पक्षपातपूर्ण हो गई। साथ ही, उसे डिफेंस असिस्टेंट की सहायता लेने के अधिकार की जानकारी नहीं दी गई, जो नियम 14(8) के तहत अनिवार्य है।

राज्य की ओर से तर्क दिया गया कि जांच छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1966 के अनुरूप हुई है, और जांच अधिकारी का स्पष्टीकरण पूछना नियमों के भीतर है।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता एक प्रशिक्षित पुलिसकर्मी होने के नाते खुद गवाहों से सवाल कर सका और दस्तावेज प्रस्तुत किए। डिफेंस असिस्टेंट की मांग न किए जाने और बाद में पहली बार अदालत में मुद्दा उठाए जाने को कोर्ट ने प्रक्रिया में दोष ढूंढने का प्रयास माना।

कोर्ट ने State of U.P. v. Harendra Arora, Mulchandani Electrical & Radio Industries Ltd. v. Workmen, और Pravin Kumar v. Union of India जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि जांच अधिकारी का स्पष्टीकरण मांगना या प्रश्न पूछना उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और इससे जांच प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण नहीं मानी जा सकती।

अंततः कोर्ट ने विभागीय जांच को वैध मानते हुए याचिका खारिज कर दी और एकल न्यायाधीश के आदेश को सही ठहराया।