एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक में भारत-चीन सैन्य संवाद: राजनाथ सिंह ने सीमा स्थिरता के लिए रखा चार सूत्रीय रोडमैप

नई दिल्ली। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की बैठक के मौके पर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने चीन के रक्षा मंत्री एडमिरल डोंग जुन से मुलाकात की। यह बातचीत हाल के महीनों में भारत और चीन के बीच सबसे उच्चस्तरीय सैन्य वार्ता मानी जा रही है। मुख्य रूप से यह वार्ता वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति बनाए रखने और दीर्घकालिक सीमा समाधान पर केंद्रित रही।

चार सूत्रीय प्रस्ताव: भारत की ओर से स्पष्ट रोडमैप

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत-चीन संबंधों में और गिरावट को रोकने के लिए चार सूत्रीय योजना पेश की:

  1. 2024 के विसंगति समाप्ति समझौते का पूर्ण पालन: दोनों पक्षों को अक्टूबर 2024 में हस्ताक्षरित समझौते को पूरी तरह लागू करने पर सहमति बनानी चाहिए, खासकर डेमचोक और डेपसांग क्षेत्रों में।
  2. तनाव कम करने के उपाय: एलएसी पर किसी भी प्रकार की झड़प से बचने के लिए लगातार प्रयास किए जाने की आवश्यकता पर बल।
  3. सीमा सीमांकन प्रक्रिया में तेजी: रक्षा मंत्री ने सीमा निर्धारण को स्थायी समाधान की दिशा में प्राथमिकता देने की बात कही और इसे लेकर मौजूदा मैकेनिज्म को सक्रिय करने का सुझाव दिया।
  4. विश्वास की कमी को दूर करना: वर्ष 2020 के सीमा गतिरोध के बाद पैदा हुई विश्वासहीनता को कम करने और पड़ोसी सहयोग की भावना को मजबूत करने की अपील।

कैलाश मानसरोवर यात्रा का पुनः प्रारंभ

इस महत्वपूर्ण बैठक के साथ ही करीब छह वर्षों के बाद कैलाश मानसरोवर यात्रा का भी पुनः आरंभ हुआ, जो पहले कोविड-19 महामारी और सीमा तनाव के कारण स्थगित कर दी गई थी। इस यात्रा को भारत-चीन संबंधों में सामान्यता की दिशा में एक सकारात्मक प्रतीकात्मक संकेत माना जा रहा है।

आतंकवाद और पाकिस्तान का मुद्दा उठा

राजनाथ सिंह ने अपने चीनी समकक्ष के समक्ष पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद, विशेष रूप से 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले का मुद्दा उठाया, जिसमें 26 नागरिक मारे गए थे। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी दी, जो पाकिस्तान के आतंकी ढांचे को ध्वस्त करने की भारत की रणनीति का हिस्सा है।

संयुक्त घोषणापत्र पर भारत का असहमति

भारत ने SCO रक्षा मंत्रियों के संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसमें आतंकवाद या पहलगाम हमले का कोई उल्लेख नहीं था। भारत ने इसे क्षेत्रीय आतंकवाद के मुद्दे को दबाने की जानबूझकर की गई कोशिश बताया। घोषणापत्र में बलूचिस्तान का संदर्भ था, जिसे भारत ने भारत-विरोधी संकेत के रूप में देखा।