नई दिल्ली। ओडिशा के पुरी में आज से भगवान जगन्नाथ की विश्वविख्यात रथ यात्रा का शुभारंभ हो गया। लाखों श्रद्धालु भारत सहित दुनिया भर से पुरी पहुंचे हैं ताकि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भव्य यात्रा का दर्शन कर सकें। आषाढ़ शुक्ल पक्ष में हर वर्ष निकाली जाने वाली यह रथ यात्रा हिंदू धर्म के चार धामों में से एक माने जाने वाले पुरी के जगन्नाथ मंदिर से आरंभ होती है।
जहां एक ओर रथ यात्रा की दिव्यता और भव्यता का अनुभव करने के लिए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ा, वहीं दूसरी ओर मंदिर की 22 पवित्र सीढ़ियों में से तीसरी सीढ़ी ‘यमशिला’ को लेकर श्रद्धालुओं में विशेष सतर्कता देखी गई।
क्या है ‘यमशिला’ की रहस्यमयी मान्यता?
पुरी के जगन्नाथ मंदिर की 22 सीढ़ियां आध्यात्मिक दृष्टि से बेहद पवित्र मानी जाती हैं। लेकिन तीसरी सीढ़ी का विशेष और रहस्यमयी महत्व है। इसे ‘यमशिला’ कहा जाता है, और मान्यता है कि यहीं यमराज, मृत्यु के देवता, का वास है।
पुराणों और लोककथाओं के अनुसार, एक बार यमराज भगवान जगन्नाथ से मिलने आए और अपनी चिंता व्यक्त की कि भगवान के दर्शन करने के बाद कोई भी आत्मा यमलोक नहीं आ रही। इस पर भगवान जगन्नाथ ने उन्हें आदेश दिया कि वे मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर निवास करें और कहा, “जो मेरे दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर पैर रखेगा, वह पापमुक्त होकर तुम्हारे लोक को प्राप्त करेगा।”
तभी से इस सीढ़ी को ‘यमशिला’ के नाम से जाना जाता है। श्रद्धालु दर्शन के बाद इस सीढ़ी पर पैर नहीं रखते, बल्कि हाथ जोड़कर इसे छूते हैं या बिना स्पर्श किए पार कर जाते हैं।
कैसे पहचाने ‘यमशिला’?
मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यमशिला सीढ़ी को काले रंग से चिन्हित किया है, जिससे कोई अनजाने में उस पर पैर न रखे। यह सीढ़ी बाकी 21 सीढ़ियों से अलग दिखती है।
पुरी की रथ यात्रा ना सिर्फ आस्था का प्रतीक है, बल्कि हिंदू संस्कृति, लोकमान्यताओं और अद्भुत परंपराओं का जीवंत उदाहरण भी है। ‘यमशिला’ की मान्यता इस यात्रा और मंदिर दर्शन को और भी रहस्यमयी एवं आध्यात्मिक बनाती है।
