बालोद, छत्तीसगढ़ | 21 जून 2025।
छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की पत्नी द्वारा चलती सरकारी पुलिस वाहन की बोनट पर बैठकर जन्मदिन मनाने का वीडियो वायरल होने के बाद राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है। सोशल मीडिया पर वायरल इस वीडियो में देखा जा सकता है कि फरहीन खान, जो कि बालतरी पुलिस बल (12वीं बटालियन), बलरामपुर–रामानुजगंज में पदस्थ डीएसपी तसलीम आरिफ की पत्नी हैं, एक पुलिस SUV की बोनट पर बैठी हैं और उसी दौरान केक काट रही हैं।
पुलिस वाहन का दुरुपयोग और सुरक्षा मानकों का उल्लंघन
वीडियो में स्पष्ट देखा जा सकता है कि SUV वाहन ब्लू बीकन (नीली बत्ती) से लैस है, जिसे केवल शीर्ष सरकारी अधिकारियों के लिए आरक्षित किया जाता है। फरहीन खान के साथ अन्य महिलाएं भी वाहन के दरवाजों से लटकी हुई हैं और सनरूफ से बाहर झांकते हुए नजर आती हैं, जो सार्वजनिक सड़क पर गंभीर सड़क सुरक्षा उल्लंघन को दर्शाता है।
विपक्ष का तीखा हमला
इस घटना पर छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने सवाल उठाया है कि क्या सरकार सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करेगी या फिर एक बार फिर सत्ता और पहुंच रखने वालों को छूट मिल जाएगी। कांग्रेस ने कहा, “क्या कानून का पालन सुनिश्चित किया जाएगा, या फिर प्रभावशाली लोगों के लिए नियमों को दरकिनार कर दिया जाएगा?”
एफआईआर में नहीं लिया डीएसपी या पत्नी का नाम
विवाद तब और गहरा गया जब सामने आया कि इस मामले में डीएसपी तसलीम आरिफ या उनकी पत्नी के खिलाफ एफआईआर में नामजद नहीं किया गया है। पुलिस ने केवल एक “अनाम चालक” के खिलाफ मोटर व्हीकल एक्ट की धाराएं 177 (गलत जानकारी देना), 184 (लापरवाही से वाहन चलाना), और 281 (सार्वजनिक स्थान पर खतरनाक कार्य करना) के तहत मामला दर्ज किया है।
सवालों के घेरे में पुलिस की निष्पक्षता
इस पूरे प्रकरण ने छत्तीसगढ़ पुलिस की निष्पक्षता और जवाबदेही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर आम नागरिकों के खिलाफ सड़क सुरक्षा उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई होती है, वहीं इस हाई-प्रोफाइल मामले में कानून का “चयनात्मक” इस्तेमाल देखने को मिला।
वहीं सोशल मीडिया पर भी आम नागरिकों ने घटना की निंदा करते हुए कार्रवाई की मांग की है। कई यूजर्स ने वीडियो को “कानून का मजाक उड़ाने वाला” करार दिया है।
निष्कर्ष:
यह घटना छत्तीसगढ़ में सत्ता, पुलिस और जवाबदेही के बीच टकराव की एक बानगी है। यदि नियम तोड़ने वालों के खिलाफ समान रूप से कार्रवाई नहीं की जाती, तो यह आम जनता में न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता है।
