नई दिल्ली, 19 जून 2025/
देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को लेकर केंद्र सरकार की हालिया नीति ने एक नई बहस को जन्म दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025-26 की पहली छमाही में योजना पर खर्च को कुल बजट के 60% तक सीमित करने का निर्देश दिया गया है। यह कदम मनरेगा की मूल ‘मांग-आधारित’ संरचना के खिलाफ माना जा रहा है।
📉 मनरेगा: मांग आधारित अधिकार, अब सीमित खर्च में कैद
मनरेगा को वर्ष 2005 में इसी सिद्धांत पर लागू किया गया था कि कोई भी ग्रामीण बेरोजगार व्यक्ति काम की मांग कर सकता है और सरकार उसे 15 दिन के भीतर काम उपलब्ध कराएगी। यह योजना रोजगार का कानूनी अधिकार देती है। परंतु, नए खर्च प्रतिबंध इस संवैधानिक प्रावधान को कमजोर करते हैं।
वित्त मंत्रालय के मासिक/त्रैमासिक व्यय नियंत्रण के दायरे में लाया जाना, योजना की स्वायत्तता और लचीलापन समाप्त करता है। यह गंभीर आर्थिक संकट और बेरोजगारी से जूझ रहे ग्रामीण भारत के लिए एक बड़ा झटका है।
📊 वित्तीय आंकड़े और ज़मीनी सच्चाई
2025-26 में मनरेगा का बजट ₹86,000 करोड़ निर्धारित किया गया है। लेकिन ₹21,000 करोड़ राशि पिछले बकायों के भुगतान में जा चुकी है। अब अगर जून तक केवल ₹51,600 करोड़ ही खर्च किए जा सकते हैं, तो बाकी वर्ष के लिए संसाधन अपर्याप्त होंगे। इससे ज़मीनी स्तर पर मजदूरों को हतोत्साहित किया जाएगा।
🧾 रिपोर्ट्स और संसदीय समितियों की चेतावनी
- संसदीय समिति (2024) ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मनरेगा को सीमित बजट से चलाना इसके क्रियान्वयन की गुणवत्ता पर नकारात्मक असर डालता है।
- समिति ने वर्ष की शुरुआत में उचित बजट आवंटन की सिफारिश की है, जो पिछले वर्षों के खर्च पर आधारित हो।
- कई अर्थशास्त्रियों और पीपुल्स एक्शन फॉर एम्प्लॉयमेंट गारंटी ने ₹2.64 लाख करोड़ वार्षिक बजट की मांग की है।
💸 मजदूरी दरों में विसंगति और न्याय की अनदेखी
मनरेगा के तहत वर्तमान मजदूरी दरें ₹200–₹250 के आसपास हैं, जो महंगाई के सापेक्ष अत्यंत कम हैं।
- संसदीय समिति ने इसे ₹400 प्रतिदिन करने की सिफारिश की है।
- अनूप सतपथी समिति ने ₹375 प्रतिदिन मजदूरी सुझाई थी।
- वर्तमान में सिर्फ 2% से 7% की वृद्धि की गई है, जो औसत ग्रामीण जीवन-यापन की लागत के बिल्कुल विपरीत है।
📉 कार्यदिवस और रोजगार में गिरावट
- वर्ष 2024-25 में प्रति परिवार औसतन 50.18 दिन का ही रोजगार मिला।
- सिर्फ 7% परिवारों को ही 100 दिनों का वादा किया गया रोजगार मिला।
- कुल कार्यदिवसों में 7.1% की गिरावट हुई है।
🧾 पश्चिम बंगाल में मनरेगा का संकट
राज्य में 2.56 करोड़ मजदूरों को पिछले तीन वर्षों से काम नहीं मिल रहा। केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार का हवाला देते हुए धारा 27 के अंतर्गत वित्तीय सहायता रोक दी है।
हालाँकि, मजदूरों का इस भ्रष्टाचार से कोई सीधा संबंध नहीं, फिर भी उन्हें उनके कानूनी अधिकार से वंचित किया गया है।
🏛️ गुजरात में मनरेगा घोटाला और दोहरा मापदंड
गुजरात के दाहोद जिले में मनरेगा में ₹70 करोड़ से अधिक के घोटाले में राज्य के मंत्री बचू खाबड़ के बेटे बलवंत खाबड़ की गिरफ्तारी से भाजपा की भ्रष्टाचार विरोधी नीति की वास्तविकता उजागर हुई है।
यह स्पष्ट करता है कि भाजपा सरकार चुनिंदा राज्यों में सख्ती दिखाती है, जबकि अपने राज्यों में बड़े घोटालों पर मौन साध लेती है।
🔍 सोशल ऑडिट पर सरकारों की उदासीनता
मनरेगा की पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए सोशल ऑडिट एक आवश्यक उपकरण है। लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप और दवाब के चलते सोशल ऑडिट की प्रभावशीलता में भी गिरावट आई है।
सोशल ऑडिट टीमों को डराना, उन्हें झूठी रिपोर्ट तैयार करने का दबाव देना, अब आम बात हो चुकी है।
🧱 निष्कर्ष: एक योजनाबद्ध कमजोर करने की नीति
मनरेगा को केंद्र सरकार बजट कटौती, तकनीकी जटिलताओं, वेतन देरी, और कानूनी प्रक्रियाओं की उपेक्षा से कमजोर कर रही है।
यह न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि करोड़ों ग्रामीण मजदूरों की आजीविका पर भी एक सीधा प्रहार है।
