छत्तीसगढ़ में शिक्षा क्रांति: अब राज्य का कोई भी स्कूल नहीं है शिक्षकविहीन

रायपुर, 14 जून 2025

छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश में प्राथमिक से लेकर हायर सेकेंडरी तक का कोई भी स्कूल अब शिक्षकविहीन नहीं है। एकल शिक्षकीय शालाओं की संख्या में 80 प्रतिशत की कमी आ चुकी है, जो शिक्षा व्यवस्था में एक बड़े सुधार का प्रतीक है।

यह परिवर्तन युक्तियुक्तकरण (Rationalization) प्रक्रिया के तहत संभव हो सका, जिसका उद्देश्य राज्य के शैक्षणिक संसाधनों का समान वितरण, शिक्षकों की तर्कसंगत पदस्थापना, और शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE) तथा नई शिक्षा नीति (NEP 2020) के अनुरूप स्कूलों में आवश्यकतानुसार शिक्षकों की नियुक्ति रहा है।

पूर्व में प्रदेश में 453 विद्यालय पूर्णतः शिक्षकविहीन और 5936 विद्यालय केवल एक शिक्षक पर निर्भर थे। विशेष रूप से सुकमा, नारायणपुर, बीजापुर जैसे संवेदनशील जिलों में यह समस्या गंभीर थी।

राज्य सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए जिला, संभाग और राज्य स्तर पर तीन चरणों में काउंसलिंग की प्रक्रिया अपनाई। परिणामस्वरूप, आज हर विद्यालय में न्यूनतम आवश्यक शिक्षक उपलब्ध हैं और कोई भी स्कूल शिक्षकविहीन नहीं है।

मुख्यमंत्री साय ने कहा, “हमने यह संकल्प लिया था कि छत्तीसगढ़ का कोई भी बच्चा शिक्षक के बिना नहीं पढ़ेगा। युक्तियुक्तकरण के माध्यम से हमने न केवल कानून का पालन किया है, बल्कि शिक्षा में समानता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने की दिशा में मजबूत कदम उठाया है। यह सिर्फ स्थानांतरण नहीं, बल्कि शिक्षा में न्याय की पुनर्स्थापना है।”

सरकार अब 1207 प्राथमिक विद्यालयों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां अभी भी एक ही शिक्षक पदस्थ है। इन शालाओं में शिक्षक संख्या बढ़ाने के लिए प्राथमिक शाला प्रधानपाठकों की पदोन्नति, नई नियुक्तियां, और प्राथमिकता आधारित पदस्थापन की रणनीति बनाई गई है।

जिन जिलों में एकल शिक्षक वाली प्राथमिक शालाएं सबसे अधिक हैं, वे हैं:

  • बस्तर – 283
  • बीजापुर – 250
  • सुकमा – 186
  • मोहला-मानपुर-चौकी – 124
  • कोरबा – 89
  • बलरामपुर – 94
  • नारायणपुर – 64
  • धमतरी – 37
  • सूरजपुर – 47
  • दंतेवाड़ा – 11
  • अन्य जिले – 22 शालाएं

इन शालाओं में शीघ्र ही आवश्यकता के अनुसार शिक्षकों की तैनाती की जाएगी।

मुख्यमंत्री ने इसे एक सामाजिक न्याय आधारित शिक्षा सुधार करार देते हुए कहा कि, “इस पूरी प्रक्रिया के केंद्र में हर बच्चा, हर गांव और हर स्कूल है। शिक्षा को समावेशी बनाने और हर बच्चे को समान अवसर देने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है।”