नारायणपुर (छत्तीसगढ़)।
बीजापुर-नारायणपुर सीमा पर अबूझमाड़ के जंगल में 21 मई को हुई मुठभेड़ में मारे गए प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के महासचिव बसवराजू समेत 27 नक्सलियों में से 8 के शवों का अंतिम संस्कार पुलिस सुरक्षा के बीच सोमवार को नारायणपुर में किया गया। प्रशासन ने यह फैसला तब लिया जब इन शवों के दावेदार पर्याप्त वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके।
क्यों प्रशासन ने किया अंतिम संस्कार?
मुठभेड़ में मारे गए कुख्यात नक्सली बसवराजू उर्फ नंबाला केशव राव के परिजन शव लेने नारायणपुर पहुंचे, लेकिन पुलिस के अनुसार वे अपने संबंध साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए। आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने परिजनों को छत्तीसगढ़ पुलिस से संपर्क करने का निर्देश तो दिया, पर शव सौंपने का आदेश नहीं दिया।
आईजी सुंदरराज पी के अनुसार, बसवराजू और अन्य शवों के दावेदार आवश्यक प्रमाण नहीं दे सके। वहीं, कोसी उर्फ हुंगी नामक माओवादी के परिजन जब आवश्यक दस्तावेजों के साथ पहुंचे तो उन्हें शव सौंपा गया और स्थानीय स्तर पर अंतिम संस्कार की अनुमति दी गई।
‘अपने ही छोड़ गए बसवराजू’
पुलिस ने बयान में कहा, “बसवराजू और उसके साथियों को उनके अपने ही पहचानने से पीछे हट गए। वहीं, प्रशासन ने सभी शवों का अंतिम संस्कार मानवीय गरिमा और विधिक प्रक्रिया का पालन करते हुए किया।”
इसके साथ ही पुलिस ने यह भी दावा किया कि माओवादियों द्वारा भव्य अंतिम संस्कार के जरिए नायकों की तरह प्रचारित करने की योजना को विफल कर दिया गया।
परिजनों ने लगाए आरोप
बसवराजू के भतीजे नंबाला जनार्दन राव ने आरोप लगाया कि उन्हें शव नहीं दिखाया गया और अंतिम समय में कहा गया कि शव की स्थिति खराब होने के कारण वे उसे ले नहीं जा सकते।
सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने भी पुलिस पर शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि संविधान और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत शव को सम्मान और परिजनों को अंतिम संस्कार का अधिकार है।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर प्रशासनिक निर्णयों और मानवाधिकारों के बीच संतुलन के प्रश्न को सामने ला दिया है।
