छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का अहम फैसला: बिजली लाइन के लिए ज़मीन मालिक की पूर्व सहमति आवश्यक नहीं, केवल मुआवज़े का अधिकार

रायपुर, 24 मई 2025। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि बिजली ट्रांसमिशन लाइनों की स्थापना के लिए ज़मीन मालिक की पूर्व सहमति अनिवार्य नहीं है। न्यायालय ने कहा कि ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट जनहित से जुड़े होते हैं, और इन्हें रोका नहीं जा सकता।

न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की एकल पीठ ने यह आदेश छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (CSPTCL) और अन्य पक्षों की सुनवाई के बाद पारित किया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि भूमि का स्वामित्व याचिकाकर्ता के पास ही रहेगा और CSPTCL केवल टॉवर की स्थापना के लिए भूमि का उपयोग करेगा, भूमि का अधिग्रहण नहीं करेगा।

पूर्व आदेश किया गया रद्द

कोर्ट ने 15 अप्रैल 2025 को पारित अपने अंतरिम रोक आदेश (interim injunction) को विलुप्त (vacated) कर दिया है। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि भूमि मालिक निर्माण कार्य पर स्थगन आदेश पाने का अधिकार नहीं रखता, वह केवल उचित मुआवज़े की मांग कर सकता है।

सूचना देना अनिवार्य, सहमति नहीं

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि CSPTCL को भूमि पर प्रवेश से पहले भूमि स्वामी को सूचित करना अनिवार्य है, लेकिन पूर्व सहमति लेना आवश्यक नहीं है। यह निर्देश विद्युत अधिनियम, 2003 और टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के प्रावधानों के अनुसार दिया गया है।

छत्तीसगढ़ की ऊर्जा भूमिका को माना महत्वपूर्ण

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि छत्तीसगढ़ एक ऊर्जा केंद्र (Power Hub) के रूप में कार्य करता है और यहां से विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति राष्ट्रीय महत्व का विषय है। इसीलिए ट्रांसमिशन लाइन जैसी आधारभूत संरचनाओं को किसी व्यक्तिगत आपत्ति के आधार पर रोका नहीं जा सकता।

इस फैसले के बाद यह साफ हो गया है कि जनहित में संचालित विद्युत परियोजनाएं भूमि स्वामियों की सहमति के अभाव में भी आगे बढ़ सकती हैं, बशर्ते उन्हें उचित मुआवज़ा प्रदान किया जाए।