छत्तीसगढ़ के किसान ने अपनाई “अकरस जुताई” तकनीक, खेती में मिली जबरदस्त सफलता

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। परंपरागत खेती से अलग हटकर बिलासपुर जिले के नगर पंचायत मल्हार के किसान जदुनंदन प्रसाद वर्मा ने खेती में वैज्ञानिक तकनीक “अकरस जुताई” को अपनाया और आज वह खुद इसकी सफलता की मिसाल बन गए हैं।

वर्मा का मानना है कि अगर किसान अपनी मिट्टी की उर्वरता बनाए रखना चाहते हैं, तो उन्हें हर 3-4 वर्षों में गहरी जुताई (अकरस जुताई) जरूर करनी चाहिए। यह न सिर्फ उपज बढ़ाने का तरीका है, बल्कि मिट्टी और खेत को पुनर्जीवित करने का एक असरदार उपाय भी है।

खरीफ फसलों के लिए सही शुरुआत

वर्मा बताते हैं कि मई-जून के महीनों में खेत की अच्छी तैयारी खरीफ फसलों जैसे कि धान, मक्का और सोयाबीन के लिए बहुत जरूरी होती है। गर्मी में की गई अकरस जुताई से मिट्टी की ऊपरी परत सूखकर भीतर तक खुल जाती है, जिससे उसमें हवा और पानी का संचार बेहतर होता है।

सख्त परतों को तोड़ने में मददगार

वह कहते हैं कि हर साल सतही जुताई से नीचे की मिट्टी की परत सख्त हो जाती है, जिससे जड़ों का विकास रुकता है। लेकिन डीप प्लाउइंग (गहरी जुताई) से ये परतें टूट जाती हैं, जड़ें गहराई तक फैलती हैं और पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर होता है।

कीट, खरपतवार और लागत—all under control

अकरस जुताई का एक और बड़ा लाभ यह है कि इससे मिट्टी में छिपे कीटों के अंडे और खरपतवार की जड़ें नष्ट हो जाती हैं। इससे रासायनिक दवाओं पर निर्भरता कम होती है और प्राकृतिक संतुलन बना रहता है।

उत्पादन बढ़ा, लागत घटी

वर्मा बताते हैं कि इस तकनीक से पौधे मजबूत होते हैं और उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। साथ ही, कृषि लागत में भी कमी आती है। उनका सुझाव है कि हर किसान को हर 3-4 साल में एक बार अकरस जुताई जरूर करनी चाहिए, ताकि मिट्टी की जान बनी रहे और खेती लाभकारी बन सके।