निलंबित आईपीएस रजनेश सिंह को हाइकोर्ट ने दिया झटका, कोर्ट ने राज्य शासन के निलंबन आदेश को ठहराया सही

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ के निलंबित आईपीएस रजनेश सिंह को हाईकोर्ट के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। अपने महत्वपूर्ण फैसले में चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पार्थ प्रीतम साहू की डिवीजन बेंच ने कहा है कि, राज्य शासन की ओर से उनके निलंबन आदेश को यूनियन पब्लिक सर्विस के नियमों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) से उनके पक्ष में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। राज्य शासन ने फोन टेपिंग सहित अन्य अनियमितता के आरोप में उन्हें 2019 में निलंबित कर दिया था।

आईपीएस रजनेश सिंह साल 2017 से 2017 तक एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) में एसपी रहे। इस दौरान उन्होंने अपने अधिनस्थ अधिकारियों से दस्तावेजों में बैक डेट में रिकार्ड दुरुस्त कराया था। इसके साथ ही उन्होंने नियमों की अनदेखी कर आम नागरिकों का फोन टेपिंग कराया था और इसके माध्यम से जानकारी हासिल कर उसे बतौर साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत किया था। इसके अलावा उन पर शासन को गुमराह करते हुए अपने पद और कर्तव्यों का दुरुपयोग करने का आरोप है। इन सभी आरोपों पर राज्य शासन ने विभागीय जांच के आदेश दिए और उन्हें 9 फरवरी 2019 को सस्पेंड कर दिया।

रजनेश सिंह ने अपने निलंबन आदेश को जारी रखने के आदेश के खिलाफ पहले केंद्र सरकार के सामने अपील की, जिसे केंद्र सरकार ने गुणदोष के आधार पर खारिज कर दिया। इसके बाद उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के समक्ष केस दायर किया। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण जबलपुर ने 16 नवंबर 2021 को राज्य शासन के उनके निलंबन जारी रखने के आदेश को अखिल भारतीय सेवा ( अनुशासन और अपील ) नियम 1969 की नियम 3 ( 1B ) का उल्लंघन माना था। साथ ही उनके निलंबन आदेश को बहाल करते हुए दो माह के भीतर उन्हें सभी देयकों का लाभ देने का आदेश दिया था।
राज्य शासन ने आईपीएस रजनेश सिंह के पक्ष में दिए गए फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कैट के आदेश पर रोक लगा दी थी। इसके बाद से इस केस में सुनवाई चल रही थी। सभी पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने उनके निलंबन आदेश को सही ठहराया और कैट के फैसले को खारिज कर दिया है।
शासन की ओर से कोर्ट को बताया गया कि राज्य समीक्षा समित के अनुमोदन के आधार पर रजनेश सिंह का निलंबन जारी रखने का आदेश दिया गया है, जो अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम , 1969 की नियम 3 ( 1B ) का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। हाईकोर्ट को यह भी बताया गया कि केंद्र सरकार के किसी भी अफसर को एक साल तक सस्पेंड रखा जा सकता है और एक साल के भीतर विभागीय जांच पूरी होनी चाहिए। विभागीय जांच पूरा नहीं होने और निलंबन अवधि बढ़ाने पर केंद्र सरकार की रिव्यू कमेटी की अनुशंसा जरूरी है। कोर्ट ने भी माना कि इन परिस्थितियों में राज्य शासन ने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के आदेशों का उल्लंघन नहीं किया है।