
रायपुर (छत्तीसगढ़)। नेशनल लोक अदालत के तहत दुर्ग सहित पूरे छत्तीसगढ़ में राजीनामा योग्य प्रकरणों का निराकरण किया गया। दुर्ग में जहां कुल 2124 प्रकरणों का निराकरण किया गया। वहीं पूरे प्रदेश में 10 हजार से अधिक प्रकरण निराकृत हुए। इस लोक अदालत में विशेष यह रहा कि न्यायालय स्वयं मोबाइल वैन के माध्यम से पक्षकार के घर पहुंचा और विभिन्न प्रकरणों में राजीनामा की सहमति ली। प्रदेश के अन्य जिलों की तुलना में दुर्ग जिले में 3 गुना अधिक प्रकरणों का निराकरण किया गया। दुर्ग में नेशनल लोक अदालत के लिए कुल 37 खंडपीठ की स्थापना की गई थी। जिनमें कुल 1747 तथा अन्य 320 प्रकरण व स्थायी लोक अदालत जनोपयोगी सेवा में 22 प्रकरणों का निराकरण किया गया।
बता दें कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) नई दिल्ली के निर्देशानुसार आज हाईब्रीड नेशनल लोक अदालत का आयोजन छत्तीसगढ़ राज्य में तालुका स्तर से लेकर उच्च न्यायालय स्तर तक आयोजित की गई। राजीनामा योग्य प्रकरणों को पक्षकारों की आपसी सुलह समझौता से निराकृत किया गया। नेशनल लोक अदालत में 10 हजार प्रकरणों का निराकरण किया जा चुका है, जिसमें लगभग एक हजार मामले कोरोना काल में उल्लंघन से संबंधित धारा 188 के हैं जो शासन की पहल पर वापस लिये गये हैं। लोक अदालत प्रकरणों का निराकरण पक्षकारों की भौतिक अथवा वर्चुअल उपस्थिति में किया गया।
न्याय खुद चल पड़ा पक्षकारों के द्वार
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश एवं कार्यपालक अध्यक्ष, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देश पर देश की पहली मोबाईल लोक अदालत को आयोजित की गई। जिसमें रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव एवं महासमुंद जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा जिला न्यायालय में लंबित 07 प्रकरणों को मोबाईल लोक अदालत वैन सुलझाया गया। मोबाइल वैन के माध्यम से पक्षकारों के घर पहुंचकर प्रकरणों को आपसी सुलह समझौते द्वारा निराकरण किया गया। इन मामलों में 2 प्रकरण दिव्यांग व्यक्तियों के जो जिला न्यायालय महासमुंद जिले के संबंधित थे, 01 व्यक्ति जिला चिकित्सालय में भर्ती था, 02 व्यक्ति बीमार होने के कारण न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पा रहे थे तथा 02 व्यक्ति वृद्ध होने के कारण न्यायालय में उपस्थित नहीं हो पा रहे थेे, जिनके प्रकरणों के निराकरण हेतु मोबाईल लोक अदालत वैन उनके पास तक पहुंची एवं प्रकरणों का निराकरण की कार्यवाही पूर्ण की गई।
दुर्ग में न्यायाधीश हरेन्द्र नाग, व्यवहार न्यायाधीश वर्ग-1, दुर्ग के न्यायालय में ‘‘राज्य वि0 आकाश यादव वगैरह’’ प्रकरण धारा 323, 294, 506 भा.दं.सं. के अंतर्गत 2018 से लंबित था। इस प्रकरण को राजीनामा हेतु आज खण्डपीठ में रखा गया था। प्रकरण में तीन प्रार्थी थे, जिसमें से दो प्रार्थी न्यायालय में उपस्थित हो गए थे, परन्तु एक प्रार्थी दयानंद नामक व्यक्ति बीमार होने के कारण अस्पताल में भर्ती था, जिसकी सहमति के बिना राजीनामा होना संभव नहीं था। जिसकी जानकारी मिलने पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव राहुल शर्मा द्वारा पक्षकार के मोबाईल नंबर के माध्यम से संपर्क किया गया। प्रार्थी ने बताया कि वह अभी चलने-फिरने में असमर्थ है, वह अपनी सहमति प्रदान करने हेतु न्यायालय नहीं आ सकता है। जिसकी जानकारी सचिव ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष राजेश श्रीवास्तव को जानकारी दी। जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अध्यक्ष के निर्देश पर पी.एल.व्ही. दुलेश्वर मटियारा को मोबाईल वैन के माध्यम से प्रार्थी का राजीनामा हेतु सहमति अंकित किए जाने हेतु भेजा गया, जिसमें प्रार्थी ने प्रकरण को राजीनामा के माध्यम से खत्म करने हेतु अपनी सहमति व्यक्त की, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2018 से लंबित यह प्रकरण समाप्त किया गया।
इसी प्रकार दुर्ग की व्यवहार न्यायाधीश रूचि मिश्रा के न्यायालय में लंबित प्रकरण क्र. 10801/19 ‘‘छत्तीसगढ़ सहकारी समिति वि0 रायेश कांत फिरगी’’ में प्रार्थी वासुदेव की तबीयत खराब होने के कारण वह न्यायालय आने में असमर्थ था, तब पी.एल.व्ही. वासुदेव यादव मोबाईल वैन के माध्यम से प्रार्थी तक पहुंचे तथा उनकी राजीनामा हेतु सहमति प्राप्त की। इसी न्यायालय में लंबित एक अन्य प्रकरण में पक्षकार वृद्ध (उम्र 65 वर्ष) होने के कारण न्यायालय आने में असमर्थ था, जिसे भी मोबाईल वैन के माध्यम से संपर्क किया गया एवं उसकी राजीनामा में सहमति प्राप्त की गई।
दुर्ग न्यायालय के ही एडीजे आनंद कुमार बघेल के न्यायालय में लंबित मोटर दुर्घटना मुआवजा से संबंधित प्रकरण 463/2019 ‘‘श्रीमती भावना महुुले वि0 बीनानाथ शाह’’, की प्रार्थिया चोट से ग्रसित होने के कारण न्यायालय आने में असमर्थ थी। जिस पर पी.एल.व्ही. ज्ञानेश्वर द्वारा प्रार्थिया से संपर्क किया गया। मोबाईल वैन के माध्यम से उन तक पहुंचे और राजीनामा हेतु सहमति प्राप्त कर 9 लाख 50 हजार रूपए की मुआवजा राशि स्वीकृत की गई।
रायपुर के रोड एक्सीडेंट के एक मामले में 78 वर्ष के बुजुर्ग पक्षकार, अली असगर अजीज को न्यायालय आने में परेशानी थी, उनके घुटनों का ऑपरेशन हुआ था, जिस कारण वे चलने-फिरने में असमर्थ थे और बुजुर्ग होने के कारण वे मोबाइल का उपयोग भी नहीं कर पाते थे। उनकी परेशानी को देखते हुये प्राधिकरण ने दो पैरा वालिंटियर्स को उनके पास भेजा और उन पैरालीगल वालिंटियर्स ने, रायपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट भूपेन्द्र कुमार वासनीकर की खंडपीठ में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से निशक्त पक्षकार अली असगर को उपस्थित कराया। न्यायालय द्वारा वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से ही अली असगर को समझाईश दी गई और राजीनामा के संबंध में चर्चा की गई। थाना कोतवाली, रायपुर के अपराध क्रमांक 372/2020 में राजीनामा के उपरांत मामला समाप्त किया।
इसी तरह चेक बाउंस के एक अन्य मामले में पक्षकार राजवंत सिंह एक दुर्घटना का शिकार हो गये और उनकी पसलियॉं टूट गई। वर्तमान में वे चलने-फिरने में असमर्थ हैं। राजवंत सिंह भी अपने मामले में राजीनामा कर मामले को खत्म करना चाहते थे लेकिन अपने स्वास्थगत कारणों से वे न्यायालय आने में असमर्थ थे। राजवंत सिंह विरोधी पक्षकार को लिये गये उधार के एवज में चेक, न्यायालय के सामने देना चाहते थे। जब यह बात प्राधिकरण को पता चली तो प्राधिकरण ने पैरा वालिंटियर्स को वाहन सहित उनके घर भेजा और उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें न्यायालय लेकर आ गये और डा. सुमित सोनी के न्यायालय में उन्होंने चेक प्रदान किया और राजीनामा के माध्यम से यह मामला भी खत्म हुआ।
19 लाख 20 हजार के न्याय शुल्क की वापसी का आदेश
दुर्ग जिला न्याायाधीश राजेश श्रीवास्तव के न्यायालय में लंबित व्यवहार वाद संविदा के विशिष्ट पालन हेतु 6 करोड़ 20 लाख रूपए का अस्थायी निषेधाज्ञा हेतु मामला 20-7-2020 पेेश किया गया था जिसमें 19 लाख 20 हजार का न्याय शुल्क चस्पा किया गया था। प्रकरण में प्रतिवादीगण 2 करोड़ 18 लाख रूपए प्रदान करने हेतु सहमत हुए, जिसके फलस्वरूप न्याय शुल्क के रूप में जमा 19 लाख 20 हजार रूपए की वापसी का आदेश न्यायालय द्वारा पारित किया गया।
अंबिकापुर में हुआ 40 वर्ष पुराने मामले का निराकरण
भूमि संबंधी विवाद को लेकर रामदुलार चौधरी वगै. के पिता शिबोधी चौधरी के द्वारा वर्ष 1980 में शिवमंगल सिंह के विरूद्ध माननीय व्यवहार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। मामला यह था कि शिबोधी चौधरी ने वर्ष 1975 में भूमि क्रय की थी उसी भूमि को शिवमंगल सिंह के द्वारा क्रय कर उस पर नामान्तरण कराकर काबिज हुआ जिसके फलस्वरूप उनके मध्य भूमि के स्वत्व एवं कब्जा संबंधी व्यवहारवाद संचालित हुआ। व्यवहारवाद के लंबनकाल में उभय पक्ष शिबोधी चौधरी एवं शिवमंगल सिंह की मृत्यु भी हो गयी, उसके पश्चात् उनके उत्तराधिकारीगण प्रकरण में पक्षकार बनकर प्रकरण संचालित किये। इस मध्य प्रकरण माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष भी लंबित रहा, उक्त मामला व्यवहार न्यायालय के समक्ष 35 वर्षों तक संचालित रहा और वर्ष 2015 में व्यवहार न्यायालय के क्षरा प्रकरण का निराकरण स्व. शिबोधी चौधरी के उत्तराधिकारियों के पक्ष में फैसला सुनाया जिसके विरूद्ध स्व. शिवमंगल सिंह के उत्तराधिकारियों के द्वारा वरिष्ठ न्यायालय माननीय पंचम अपर जिला न्यायाधीश अंबिकापुर के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई। अपील के निराकरण के लिए उभय पक्षों के मध्य समझौता की बातचीत हुई। जिसमें संबंधित न्यायालय के द्वारा उभय पक्षों को समझाईश दी गई। अंततः मामला उभय पक्षों के द्वारा संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी ओम प्रकाश जायसवाल की समझाईश तथा आपसी बातचीत कर समझौता के आधार पर अपील का निराकरण नेशनल लोक अदालत के माध्यम से 6 वर्षों के पश्चात् हो गया। उक्त समझौता प्रकरण 40 वर्ष पुराना होने के कारण संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी के समझाईश एवं सहयोग से हुआ जिसमें उभय पक्ष के अधिवक्ता विकास श्रीवास्तव एवं उदयराज तिवारी ने भी सहयोग दिया।
