रायपुर। छत्तीसगढ़ की अदालतों में इन दिनों एक ऐसा मामला सामने आया जिसने घरेलू रिश्तों की उस छिपी सच्चाई को उजागर किया, जिसे लोग अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं—मानसिक क्रूरता। कई बार यह अत्याचार दिखाई नहीं देता, लेकिन उसका बोझ किसी को भीतर से तोड़ देता है। इसी संवेदनशील मुद्दे पर हाई कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है, जो आने वाले समय में कई वैवाहिक विवादों का रास्ता तय कर सकता है।
इस पूरे मामले में Chhattisgarh High Court mental cruelty case केंद्र में रहा।
कोर्ट का साफ संदेश: क्रूरता सिर्फ शारीरिक नहीं होती
Chhattisgarh High Court mental cruelty case: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिविजन बेंच—जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद—ने स्पष्ट कहा कि पत्नी द्वारा बार-बार आत्महत्या की धमकी देना, खुद को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करना और पति पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता माना जाएगा।
अदालत ने कहा कि मानसिक क्रूरता उतनी ही हानिकारक होती है जितनी शारीरिक हिंसा, क्योंकि यह व्यक्ति को लगातार भय, तनाव और असुरक्षा में जीने पर मजबूर कर देती है।
तलाक से शुरू हुई लड़ाई, हाई कोर्ट में नया मोड़
Chhattisgarh High Court mental cruelty case: यह मामला बलोद जिले के एक व्यक्ति से जुड़ा है। उसकी शादी मई 2018 में हुई थी।
फैमिली कोर्ट ने जून 2024 में पति के पक्ष में तलाक मंजूर किया था। पत्नी ने फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन वहाँ कहानी बिलकुल अलग दिशा में आगे बढ़ी।
पति ने अदालत को बताया कि शादी के कुछ ही महीने बाद से पत्नी बार-बार आत्महत्या की धमकी देने लगी थी। उसने कई बार जहर खाने, चाकू से खुद को चोट पहुँचाने और केरोसिन डालकर आग लगाने की कोशिश भी की।
अक्टूबर 2019 में पति ने इन घटनाओं को लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। उसके अनुसार, वह लगातार इस डर में जी रहा था कि कहीं पत्नी खुद को नुकसान न पहुँचा दे और उसकी जिम्मेदारी उस पर न आ जाए।
यह सब बातें Chhattisgarh High Court mental cruelty case को और गंभीर बनाती हैं।
सबूतों ने कोर्ट का रुख बदला
Chhattisgarh High Court mental cruelty case: क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान पति ने बताया कि उसने पत्नी को मायके इसलिए छोड़ा था ताकि वह खुद को चोट पहुँचाने से बच सके।
कोर्ट ने माना कि पत्नी की हरकतों ने पति के मन में लगातार भय पैदा किया और यह स्थिति मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आती है।
अदालत ने कहा—यह मानसिक क्रूरता का स्पष्ट उदाहरण है, और ऐसे हालात में पति का अलग रहना व तलाक मांगना उचित है।
धर्म परिवर्तन के दबाव का मुद्दा भी सामने आया
Chhattisgarh High Court mental cruelty case: एक सामुदायिक प्रतिनिधि ने गवाही दी कि पत्नी और उसके परिवार ने पति पर इस्लाम अपनाने का दबाव डाला था।
पत्नी ने इसे नकारा, लेकिन परिस्थितियों और गवाहों के आधार पर हाई कोर्ट ने इस बयान को विश्वसनीय माना।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता पर दबाव डालना भी मानसिक क्रूरता का एक रूप है।
पत्नी ने बिना ठोस कारण घर छोड़ा
Chhattisgarh High Court mental cruelty case: पत्नी का दावा था कि वह हमेशा पति के साथ रहना चाहती थी और पति ने उसे छोड़ दिया, लेकिन अदालत ने सबूतों के आधार पर माना कि नवंबर 2019 से पत्नी बिना उचित कारण के पति से अलग रह रही है।
फैमिली कोर्ट द्वारा तय किया गया 2,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा।
वैवाहिक मामलों के लिए मिसाल बना यह फैसला
यह Chhattisgarh High Court mental cruelty case न सिर्फ एक दंपत्ति की कानूनी लड़ाई है, बल्कि एक महत्वपूर्ण संदेश भी है—
मानसिक क्रूरता वास्तविक होती है, और अदालत इसे गंभीरता से लेती है।
हाई कोर्ट का यह निर्णय आने वाले समय में कई ऐसे मामलों का मार्गदर्शन करेगा, जहाँ मानसिक तनाव और भय को अब कानून में स्पष्ट रूप से सुना और समझा जाएगा।
