बस्तर ओलंपिक 2025: आतंरिक बदलाव की नई कहानी, आत्मसमर्पित माओवादी अब खेल मैदान के नए सितारे

बस्तर की लाल मिट्टी इस सर्दी कुछ अलग कहानियाँ बयां कर रही है। कभी जंगलों में बंदूक लेकर भागने वाले कई पूर्व माओवादी अब खेल के मैदानों में दौड़ रहे हैं। वर्षों तक संघर्ष और भय की छाया में जीने वाले इन युवाओं की जिंदगी अब Bastar Olympics 2025 में नई दिशा पा रही है।


कमला की नई शुरुआत—बंदूक से रस्साकशी तक

Bastar Olympics 2025: नारायणपुर की कमला, जो अब तक गोली–बारूद की आवाजों के बीच अपना जीवन काटती रही, इस बार रस्साकशी की रस्सी थामे मैदान में पसीना बहा रही है।

मैंने इस साल आत्मसमर्पण किया। अब हर खींचाव मुझे मेरे जीवन को दूसरी ओर खींचने जैसा लगता है,” कमला ने मुस्कुराते हुए कहा।

बस्तर ओलंपिक में फाइनल राउंड में पहुँचने का उत्साह उनकी आंखों में साफ झलकता है।


लोकश का सपना—बोले से तीरंदाजी तक का सफर

Bastar Olympics 2025: पोडियाम भीमा उर्फ लोकश भी इसी वर्ष माओवादी जीवन से बाहर आए हैं। गहरे जंगलों में छिपे कैंपों तक खबरें पहुँचती थीं कि पूर्व माओवादी बस्तर ओलंपिक में भाग ले रहे हैं।

मुझे हमेशा लगता था कि एक दिन जब मैं सरेंडर करूंगा, तो ओलंपिक ज़रूर खेलूंगा,” भीमा कहते हैं। आज वे तीरंदाजी में निशाना साधने की कला सीख रहे हैं।


3 लाख से अधिक प्रतिभागियों के साथ बस्तर का सबसे बड़ा आयोजन

Bastar Olympics 2025 इस वर्ष अपने दूसरे संस्करण में है। सात जिलों में ब्लॉक से लेकर डिवीजन स्तर तक लगभग 3.91 लाख खिलाड़ियों ने पंजीकरण कराया है, जिनमें 2.27 लाख से अधिक महिलाएं शामिल हैं।

कबड्डी, हॉकी, फुटबॉल, एथलेटिक्स, तीरंदाजी, वॉलीबॉल, वेटलिफ्टिंग, कराटे और रस्साकशी जैसे 11 खेल शामिल हैं।


अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी की नजरों में बदलता बस्तर

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 13 दिसंबर को फाइनल दिवस पर शामिल होंगे। उन्होंने पहले ही कहा था कि बस्तर ओलंपिक “नक्सलवाद की आखिरी कील” साबित होगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि बस्तर अब भारत में परिवर्तन का प्रतीक बन चुका है।


‘नुवा बाट’—नए रास्ते पर लौटते कदम

Bastar Olympics 2025: छत्तीसगढ़ सरकार ने ‘Nuva Baat’ यानी ‘नया रास्ता’ के तहत पुनर्वासित माओवादियों और नक्सल हिंसा के पीड़ितों को एक ही टीम में शामिल किया है।

इस बार 500 से अधिक आत्मसमर्पित माओवादी और 600 से अधिक ‘नुवा बाट’ प्रतिभागी मैदान में उतर रहे हैं।

बस्तर IGP पी. सुंदरराज ने कहा—
ये खेल आयोजन बस्तर की सामूहिक शक्ति और एकता का सबसे शक्तिशाली प्रतीक है। खेल ने जख्म भरे हैं, भरोसा लौटाया है।


खेल बदल रहा है सोच—एक नए बस्तर की नींव

पूर्व माओवादी जग्गू ताती कहते हैं—
हर दौड़, हर तीर और हर वॉली में हमारे भीतर कुछ बदलता है। अब समझ में आता है कि जंगलों में रहते हुए हमारी सोच कितनी सीमित थी।

नारायणपुर की रानौती, जो इस बार रस्साकशी और खो-खो में हिस्सा लेंगी, बताती हैं कि उन्होंने अपनी पुनर्वास योजना का फैसला भी खेल प्रदर्शन के बाद ही करना चाहा था।


एक पैर खोकर भी नहीं रुका हौसला

बीजापुर के किशन कुमार अक्का 2024 में IED ब्लास्ट में अपना पैर खो बैठे थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

अब मेरा जीवन खेल को समर्पित है। मैं हर प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाहता हूँ, सिर्फ बस्तर ओलंपिक ही नहीं,” वे कहते हैं।

वे इस बार पैरा इवेंट्स में उतरेंगे।


जिले से जगदलपुर तक—आखिरी चरण के लिए 3,000+ खिलाड़ी तैयार

Bastar Olympics 2025: 25 अक्टूबर से शुरू हुए खेल अब फाइनल चरण में पहुँच चुके हैं।
10,000 से अधिक ब्लॉक जीतने वाले खिलाड़ियों में से अब 3,000–3,500 खिलाड़ी 11 से 13 दिसंबर तक जगदलपुर में अंतिम मुकाबले खेलेंगे।


बस्तर ओलंपिक 2025—नई पहचान, नया बस्तर

एक महिला पूर्व माओवादी, जो अब पुलिस सेवा में हैं, कहती हैं—
अतीत खत्म हो चुका है। अब मैं सिर्फ दौड़ती हूँ, जीतती हूँ और अपनी बेटियों को खेल में आगे बढ़ाऊंगी।

Bastar Olympics 2025 सिर्फ खेल प्रतियोगिता नहीं, बल्कि एक नया सामाजिक पुनर्जन्म है।
एक ऐसा अवसर जहां कभी आमने–सामने खड़े रहे लोग अब एक ही टीम की जर्सी पहनकर बस्तर के लिए नई कहानी लिख रहे हैं।

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