नई दिल्ली। भारत में हर 16 मिनट में एक रेप की वारदात दर्ज होती है। हाल ही में कोलकाता की महिला डॉक्टर के बलात्कार और हत्या ने देश को फिर हिला दिया है। लोग सड़कों पर उतरकर त्वरित न्याय की मांग कर रहे हैं। इसी बीच Akku Yadav murder case एक बार फिर चर्चा में है—एक ऐसा मामला जिसने न सिर्फ न्याय व्यवस्था पर सवाल उठाए, बल्कि यह भी बताया कि जब कानून सालों तक खामोश रहता है, तो पीड़ित आखिर कब तक इंतजार करें?
लगभग 20 साल पहले हुई यह घटना आज भी लोगों की रूह कांपाने के लिए काफी है। नागपुर के कस्तूरबा नगर की 200 महिलाओं ने कोर्टरूम में घुसकर एक ऐसे सीरियल रेपिस्ट को मौत के घाट उतार दिया, जिसने वर्षों तक पूरे इलाके को आतंक में रखा था।
कौन था अक्कू यादव, जिससे पूरा इलाका डरता था?
अक्कू यादव उर्फ भारत कालीचरण नागपुर जिले के कस्तूरबा नगर का कुख्यात अपराधी था। बचपन से ही अपराध की दुनिया में उतर चुका यह व्यक्ति धीरे-धीरे इतना क्रूर हो गया कि उसका नाम सुनकर लोग कांप उठते थे।
उसने 300 से अधिक परिवारों को अपनी दहशत में रखा।
वह महिलाओं, बच्चियों और यहां तक कि बुज़ुर्गों पर भी हिंसा करता था।
गैंगरेप कराना, घरों में घुसकर मारपीट, और विरोध करने वालों को यातनाएं देना—ये उसकी दिनचर्या बन चुकी थी।
यॉर्डिनरी गैंगस्टर नहीं, बल्कि एक सीरियल रेपिस्ट और साइकोपैथ—यही था Akku Yadav।
जब पुलिस और सिस्टम ने आंखें मूंद लीं
कस्तूरबा नगर की महिलाओं ने कई बार शिकायत की, लेकिन पुलिस हर बार उसे बचाती रही।
उसके पास पैसा था, राजनीतिक पहुंच थी, और पुलिस से सीधा गठजोड़ था।
महिलाओं के बयान अदालत में खारिज कर दिए जाते थे।
उनकी एफआईआर तक दर्ज नहीं होती थी।
और यहीं से शुरू हुआ कानून पर अविश्वास।
एक चिंगारी, जिसने आग बना दी आवाज़
अगस्त 2004 में Akku Yadav ने 25 वर्षीय महिला से रेप किया और उसके घर पहुँचकर उसे धमकाया कि वह उसका चेहरा एसिड से जला देगा।
इस बार भी पुलिस ने शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।
डरी-सहमी वह महिला अपनी रसोई में गई, गैस ऑन की और माचिस हाथ में लेकर चिल्लाई—
“अगर तुमने कदम बढ़ाया तो हम सब यहीं खत्म हो जाएंगे।”
अक्कू और उसके गुर्गे भाग गए।
लेकिन इस घटना ने इलाके में हिम्मत की पहली लौ जलाई।
महिलाएं घरों से बाहर निकलीं और कह दिया—
“अब बहुत हुआ। अब हम न्याय खुद करेंगे।”
अदालत के भीतर 200 महिलाओं का तूफान
अक्कू यादव को पुलिस सुरक्षा में कोर्ट लाया गया था।
अदालत में पहुंचते ही उसने पीड़ित महिलाओं को गालियां दीं और एक महिला को—जिसके साथ वह कई बार रेप कर चुका था—”वेश्या” कहा।
बस, यहीं पर सब्र टूट गया।
एक महिला ने अपनी चप्पल उतारी और उसे मारते हुए कहा—
“तू या मैं—दोनों एक साथ नहीं जी सकते।”
और फिर जैसे तूफान आया हो…
200 महिलाएं कोर्टरूम का गेट तोड़कर अंदर घुस गईं।
चिली पाउडर उसके चेहरे पर फेंका गया।
उसके मुंह में लाल मिर्च और पत्थर ठूंसे गए।
और अंत में महिलाओं ने उसे चाकुओं और धारदार उपकरणों से 70 से अधिक बार गोदा।
अक्कू यादव—जिससे पूरा शहर डरता था—कुछ ही मिनटों में खत्म हो चुका था।
“आप हमें सज़ा दें, लेकिन हमने गलत नहीं किया”
अक्कू के मारे जाने के बाद महिलाओं ने अदालत में खड़े होकर कहा—
“न्यायालय चाहे जो सज़ा दे, हमने अपनी बेटियों की रक्षा की है।”
एक महिला ने रोते हुए कहा—
“15 साल तक इंतजार किया। किसी ने हमारी नहीं सुनी। हमें खुद ही राक्षस को मारना पड़ा।”
आखिर यह न्याय था या प्रतिशोध?
Akku Yadav murder case आज भी बहस का विषय है।
कानूनी रूप से यह हत्या थी—लेकिन सामाजिक रूप से यह उन महिलाओं की चीख थी, जिन्हें सिस्टम ने हमेशा चुप कराया।
इस घटना ने एक संदेश दिया—
जब न्याय की राह बंद हो जाए, तब पीड़ितों के पास क्या विकल्प बचता है?
आज यह घटना क्यों याद की जा रही है?
क्योंकि देश में आज भी रेप के मामले बढ़ रहे हैं।
क्योंकि पीड़ित आज भी सालों तक न्याय का इंतजार करते हैं।
और क्योंकि Akku Yadav murder case हमें याद दिलाता है कि न्याय में देरी, कभी-कभी न्याय की हत्या भी कर देती है।
