नई दिल्ली: Special Intensive Revision (SIR) को लेकर जारी राजनीतिक बहस बुधवार को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची, जहाँ अदालत ने बेहद अहम सवाल उठाया। Supreme Court SIR debate की सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) सुर्या कांत ने पूछा कि “अगर कुछ ‘अनधिक्रत घुसपैठिए’ सिर्फ सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ लेने के लिए आधार कार्ड हासिल कर लेते हैं, तो क्या उन्हें मतदान का अधिकार भी मिल जाना चाहिए?”
यह टिप्पणी तब आई जब अदालत उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिनमें SIR प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
“आधार एक विशेष उद्देश्य के लिए बना दस्तावेज़” — CJI
CJI सुर्या कांत ने कहा:
“आधार कार्ड एक क़ानून के तहत बनाया गया दस्तावेज़ है और सिर्फ उतनी ही हद तक वैध है जितनी हद तक वह किसी लाभ या अधिकार को पहचान देता है। इसका उद्देश्य स्पष्ट है। इसलिए यह कहना गलत होगा कि आधार होने से कोई व्यक्ति स्वचालित रूप से मतदाता बनने का अधिकारी हो जाता है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि आधार को जिस मक़सद से बनाया गया है, उससे आगे जाकर उसे राजनीतिक अधिकार तय करने का आधार मान लेना उचित नहीं है।
SIR प्रक्रिया क्यों विवाद में है?
SIR यानी विशेष तीव्र पुनरीक्षण अभियान राज्य चुनाव आयोगों द्वारा मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए अपनाया जा रहा है।
लेकिन कई राजनीतिक दलों और संगठनों का कहना है कि—
- यह प्रक्रिया मनमानी है,
- संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है,
- और मतदाता सूची से वैध नाम हटाए जाने का खतरा पैदा करती है।
इसी विवाद को लेकर कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं।
मानव कहानियों का असर भी दिखाई दिया
सुनवाई के दौरान कई याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि SIR की वजह से ऐसे लोग भी परेशान हुए हैं जिनके पास आधार, राशन कार्ड और निवास प्रमाण जैसे सभी ज़रूरी दस्तावेज़ मौजूद हैं।
उनका कहना है कि गलत तरीके से “अनधिकृत” चिन्हित होने के कारण उनकी नागरिक पहचान खतरे में पड़ सकती है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि में गरमाती बहस
पिछले कुछ हफ्तों में SIR को लेकर कई राज्यों में राजनीतिक बयानबाज़ी तेज़ हुई है।
कई विपक्षी दलों का आरोप है कि इस प्रक्रिया का उपयोग मतदाता सूची में हेरफेर के लिए किया जा सकता है।
दूसरी ओर, कुछ सत्तारूढ़ नेता इसे “मतदाता सूची की सफाई” के लिए आवश्यक बता रहे हैं।
अगली सुनवाई में क्या होगा?
अदालत ने केंद्र और चुनाव आयोग से स्पष्ट जवाब मांगा है कि—
- आधार का उपयोग मतदाता पहचान से कैसे जोड़ा जा सकता है?
- SIR प्रक्रिया के दौरान नागरिक अधिकारों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी?
- और कौन-सी कानूनी सीमाएँ चुनाव आयोग को पालन करनी होंगी?
अगली सुनवाई में अदालत इस मुद्दे पर विस्तृत विचार करेगी।
Supreme Court SIR debate अब सिर्फ तकनीकी विषय नहीं रहा, बल्कि नागरिक अधिकार, मतदाता पहचान और आधार की सीमाओं पर एक बड़ा संवैधानिक प्रश्न बन गया है।
अदालत की यह टिप्पणी आने वाले दिनों में राजनीतिक हलकों में और भी बहस को जन्म दे सकती है।
