गुरुद्वारा में प्रवेश से इनकार पर बर्खास्त ईसाई अफसर को ‘कैंटेंकरस’ और ‘मिसफिट’ बताया, सेना का फैसला बरकरार

नई दिल्ली: भारतीय सेना से बर्खास्त किए गए ईसाई अधिकारी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बेहद कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने पूर्व लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन को “cantankerous man” (झगड़ालू व्यक्ति) और “misfit” करार देते हुए कहा कि उनकी हरकत सेना की मूल आचार–संहिता (military ethos) के खिलाफ थी। इसलिए सेना द्वारा की गई बर्खास्तगी पूरी तरह उचित है।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा:
“यह किस तरह का संदेश दे रहा है? सेना में ऐसी अनुशासनहीनता की कोई जगह नहीं। ऐसे व्यक्ति को तो तुरंत हटाया जाना चाहिए था।”


📌 क्या है पूरा मामला?

3rd कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट रहे सैमुअल कमलेसन को बर्खास्त कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश का पालन करने से इनकार किया। आदेश था कि वे एक गुरुद्वारे के पवित्र स्थल (sanctum sanctorum) में प्रवेश कर पुजा/अर्चना संबंधी औपचारिकता पूरी करें।

कमलेसन ने कहा कि ऐसा करना उनकी ईसाई धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है और उनका “monotheistic faith” इस प्रकार की पूजा की अनुमति नहीं देता।

सेना ने इसे आदेश की अवहेलना और धार्मिक सद्भाव को ठेस पहुंचाने वाली गंभीर अनुशासनहीनता माना।


📌 दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सेना के फैसले को सही ठहराया

इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने भी सेना की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहा था कि कमलेसन ने
“अपने धर्म को वरिष्ठ अधिकारी के वैध आदेश से ऊपर रखा, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है।”


📌 सुप्रीम कोर्ट: “वर्दी पहनकर निजी धार्मिक व्याख्या नहीं चल सकती”

सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि वर्दी में रहते हुए कोई भी अधिकारी अपनी निजी धार्मिक समझ को सेना के अनुशासन से ऊपर नहीं रख सकता।

जस्टिस जॉयमाला बागची ने टिप्पणी की:
“आपके पादरी ने भी सलाह दी थी। आप वर्दी में हैं, वहां निजी धार्मिक व्याख्या नहीं चलेगी।”


📌 अधिकारी के वकील ने क्या तर्क दिया?

सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने अदालत से कहा:

  • “सेना ने एक ही गलती पर उन्हें बर्खास्त कर दिया।”
  • “उन्होंने होली, दिवाली जैसे त्योहार मनाकर धार्मिक सद्भाव दिखाया है।”
  • “वह गुरुद्वारे के बाहर तक जाने को तैयार थे, पर अंदर जाकर पूजा करना उनके धर्म के खिलाफ था।”

उन्होंने तर्क दिया कि संविधान व्यक्ति को किसी भी धर्म का पालन न करने का अधिकार देता है।

लेकिन अदालत ने इन सभी दलीलों को खारिज कर दिया।


📌 सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय

अदालत ने साफ कहा कि भारतीय सेना में धार्मिक विविधता का सम्मान अनिवार्य है, और ऐसे अधिकारी जिन्हें दूसरों की आस्था स्वीकारने में समस्या है, वे सेना जैसे संवेदनशील संस्थान के लिए उपयुक्त नहीं हैं।

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