छत्तीसगढ़ शासन के तकनीकी शिक्षा विभाग के अधीन आने वाले स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय (CSVTU), भिलाई में पिछले दो वर्षों से नियमित कुलसचिव की नियुक्ति नहीं हो सकी है। स्थिति यह है कि प्रशासनिक व्यवस्था लगातार कमजोर होती जा रही है और इसका सीधा असर छात्रों पर पड़ रहा है।
अस्थायी कुलसचिव पर परिवारवाद के आरोप
वर्तमान में अस्थायी कुलसचिव के रूप में पदस्थ अंकित अरोरा, मूल रूप से इंजीनियरिंग कॉलेज लखनपुर, अंबिकापुर में सहायक प्राध्यापक हैं। हालांकि उन्हें सीधे विश्वविद्यालय में संलग्न कर कुलसचिव का प्रभार दिया गया। विश्वविद्यालय से जुड़े वरिष्ठ लोगों का कहना है कि यह पूरा मामला परिवारवाद और नियमों के उल्लंघन से जुड़ा हुआ है।
जांच और दस्तावेज बताते हैं कि अंकित अरोरा को बिना शासन की अनुमति के विश्वविद्यालय में संलग्न किया गया। यही नहीं, उन्हें ऐसे पद का प्रभार दिया गया, जिसके लिए विश्वविद्यालय के यूटीडी में पदस्थ प्रोफेसर या एसोसिएट प्रोफेसर को ही नियुक्त किया जाना चाहिए।
जांच समिति में परिवारवाद और भ्रष्टाचार की पुष्टि
छात्र संगठनों और स्थानीय लोगों की शिकायत पर शासन ने इस पूरे मामले की जांच एक समिति से कराई। मार्च 2024 में जारी शासनादेश में अंकित अरोरा और दीप्ति वर्मा को मूल संस्थान में वापस भेजने के निर्देश दिए गए।
लेकिन उल्लेखनीय यह है कि इन निर्देशों का पालन आज तक नहीं हुआ है।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ लोक आयोग ने भी पूर्व कुलपति डॉ. एम.के. वर्मा, पूर्व कुलसचिव डॉ. के.के. वर्मा और दीप्ति वर्मा को कॉलेज संबद्धता मामले में दोषी पाया है। आयोग ने शासन को कठोर कार्रवाई की अनुशंसा की है।
नियमित कुलसचिव नियुक्त करने की मांग तेज
विश्वविद्यालय से जुड़े सूत्र बताते हैं कि अस्थायी कुलसचिव अंकित अरोरा अब नियमित कुलसचिव का आदेश जारी कराने के प्रयास कर रहे हैं।
वहीं, छात्र संगठन जल्द ही मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और तकनीकी शिक्षा मंत्री से मुलाकात कर अनुभवी प्रोफेसर या प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी को नियमित कुलसचिव नियुक्त करने की मांग करेंगे।
“शिक्षण संस्थानों को परिवारवाद से मुक्त होना चाहिए” — जानकार
राज्य के शैक्षणिक विशेषज्ञों का कहना है कि विश्वविद्यालय के सुचारू संचालन के लिए अनुभवी और वरिष्ठ प्रोफेसर की नियुक्ति बहुत आवश्यक है। उनका मानना है कि किसी भी उच्च शिक्षा संस्था का प्रशासन तभी मजबूत होता है जब उसकी नियुक्तियाँ पारदर्शिता और योग्यताओं के आधार पर हों।
इस पूरे मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब शासन ने जांच में दोष सिद्ध होने के बाद आदेश जारी कर दिया था, तो आज तक उसका पालन क्यों नहीं हुआ?
इन परिस्थितियों में CSVTU regular registrar appointment का मुद्दा और भी गंभीर हो गया है।
