कोलकाता, 23 नवंबर 2025।
पश्चिम बंगाल में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया को लेकर अब देशभर में बहस तेज हो गई है। एजुकेशनिस्ट्स’ फोरम, वेस्ट बंगाल और देश बचाओ गण मंच द्वारा आयोजित एक चर्चा में कई प्रमुख विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि यह अभ्यास केवल “तकनीकी सुधार” नहीं, बल्कि मतदाता सूची को राजनीतिक रूप से पुनर्गठित करने का प्रयास हो सकता है।
कार्यक्रम में सामाजिक वैज्ञानिक और राजनीतिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव, राजनीतिक अर्थशास्त्री पराकला प्रभाकर और शिक्षाविद् ओमप्रकाश मिश्रा शामिल हुए।
🔥 “यह ब्लडलैस पॉलिटिकल जेनोसाइड है” — पराकला प्रभाकर
चर्चा में सबसे तीखी टिप्पणी करते हुए पराकला प्रभाकर ने कहा कि SIR का असर सामान्य संशोधन से कहीं अधिक गंभीर हो सकता है।
उन्होंने कहा:
“यह सिर्फ वोटर लिस्ट सुधार नहीं, बल्कि एक ब्लडलैस पॉलिटिकल जेनोसाइड है। पहले जाति या धर्म के आधार पर लोगों को निशाना बनाया जाता था, अब उन्हें वोट के अधिकार से वंचित किया जा रहा है।”
प्रभाकर ने दावा किया कि—
- बिहार में SIR के दौरान भी कई नाम बिना स्पष्ट कारण हटाए गए
- सत्ताधारी दल के अनुकूल मतदाताओं के नाम सुरक्षित रहे
- बाकी वर्गों के नाम बड़ी संख्या में काटे गए
उन्होंने कहा कि बंगाल में यह प्रक्रिया “NRC का बैकडोर एंट्री” साबित हो सकती है और इससे गरीबों, अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों पर सबसे अधिक असर पड़ेगा।
⚠️ योगेंद्र यादव की चेतावनी: “4 दिसंबर तक फॉर्म न जमा किया तो नाम स्थायी रूप से हट जाएगा”
योगेंद्र यादव ने कहा कि उन्हें शुरू से ही संदेह था कि बिहार में SIR केवल एक ट्रायल रन था और वास्तविक लक्ष्य पश्चिम बंगाल था।
उन्होंने दावा किया:
“यदि लोग 4 दिसंबर से पहले आवश्यक फॉर्म नहीं भरेंगे, तो उनके नाम स्थायी रूप से हट सकते हैं। यह दुनिया का सबसे बड़ा मताधिकार हनन बन सकता है।”
यादव ने यह भी कहा कि हटाए गए नामों के लिए नागरिकों के पास कोई कानूनी उपाय नहीं बचेगा।
🧭 “लोग परेशान, सिर्फ कुछ सीटें जीतने के लिए यह दौड़” — ओमप्रकाश मिश्रा
ओमप्रकाश मिश्रा ने कहा कि पश्चिम बंगाल के नागरिक बहुत सजग हैं, लेकिन फिर भी यह प्रक्रिया लोगों के लिए बड़ी परेशानी पैदा कर रही है।
उन्होंने कहा:
“सिर्फ कुछ सीटें जीतने के लिए लोगों को बेवजह दफ्तरों के चक्कर लगवाए जा रहे हैं।”
🎯 SIR क्या चुनौतियाँ पैदा कर रहा है?
- मतदाता सूची से बड़ी संख्या में नाम हटने का खतरा
- SIR को लेकर राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ रहा है
- विशेषज्ञों के अनुसार यह NRC जैसी अभ्यास प्रक्रिया की शुरुआत हो सकती है
- सामाजिक तौर पर कमजोर वर्गों पर भारी बोझ
- नागरिकों को कम समय में दस्तावेज जुटाने की मजबूरी
🎤 नागरिकों में बढ़ती चिंता
कार्यक्रम में शामिल प्रतिभागियों का मानना है कि SIR केवल प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं रह गई है, बल्कि यह लोकतांत्रिक अधिकारों के संरक्षण और नागरिकता की मूल भावना का बड़ा प्रश्न बन चुकी है।
चर्चा में बार-बार यह बात उभरकर आई कि यदि प्रक्रिया पारदर्शी नहीं रही, तो लोकतांत्रिक ढांचा प्रभावित हो सकता है।
