रमन सिंह ने सुनाया माओवादी हमले का किस्सा: “छुरिया में गोलियां चल रहीं थीं, ग्रामीणों ने बचाई थी जान”

छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन की एक बेहद खतरनाक घटना को याद करते हुए बताया कि कैसे छुरिया में माओवादी हमले के दौरान उनकी जान बाल–बाल बची थी।
यह खुलासा उन्होंने NDTV छत्तीसगढ़ कॉन्क्लेव में बातचीत के दौरान किया, जहां उन्होंने राज्य के नक्सल इतिहास और अपने अनुभवों का विस्तार से जिक्र किया।
इस पूरी बातचीत में उन्होंने कई बार Raman Singh Maoist attack story का संदर्भ दिया।

“अचानक गोलियां चलने लगीं… मैं समझ ही नहीं पाया क्या हो रहा है”

रमन सिंह ने कहा कि वह अपने लोकसभा क्षेत्र रायगढ़–नंदगांव के अंतर्गत आने वाले छुरिया कस्बे के दौरे पर पहुंचे थे।
जैसे ही उनका वाहन कस्बे में प्रवेश कर रहा था, उन्हें सड़क किनारे पुलिस बल और कंटीले तार लगाते जवान नजर आए। पहले उन्हें लगा कि यह सामान्य सुरक्षा व्यवस्था है, पर तभी माहौल बदल गया।

उन्होंने बताया,
“बस को पार करते ही अचानक गोलियां चलने लगीं। पहले तो लगा पटाखे फूट रहे हैं, लेकिन कुछ ही सेकंड में समझ आ गया कि यह माओवादी हमला है।”

ग्रामीणों ने दौड़कर बचाई जान

हमले के बीच, सैकड़ों ग्रामीण दौड़ते हुए उनके पास पहुंचे और उन्हें तुरंत जीप से बाहर निकालकर पास के एक अधिकारी के घर में सुरक्षित पहुंचाया।

रमन सिंह ने कहा,
“गोलियां करीब एक घंटे तक चलती रहीं। ग्रामीणों ने जिस बहादुरी से मेरी जान बचाई, वह मैं आज भी नहीं भूल सकता।”

पुलिस स्टेशन पर ऐसा दिखा मुठभेड़ का असर

हमला शांत होने के बाद रमन सिंह सबसे पहले छुरिया पुलिस स्टेशन पहुंचे। वहां सब-इंस्पेक्टर और दो कांस्टेबल जिंदा थे, जिन्होंने लगातार फायरिंग कर पुलिस स्टेशन की रक्षा की थी।
मुठभेड़ में एक माओवादी मारा गया था।

उन्होंने कहा कि यह घटना उनके जीवन के सबसे यादगार और भयावह अनुभवों में से एक थी।
पूरी कहानी में बार-बार Raman Singh Maoist attack story को उन्होंने अपनी स्मृतियों का अहम हिस्सा बताया।

“यह था छत्तीसगढ़ का सच… कई साल तक नक्सलवाद की चपेट में रहा राज्य”

रमन सिंह ने कहा कि उस दौर में छत्तीसगढ़ का बड़ा हिस्सा माओवादी हिंसा की चपेट में था और लोगों का जीवन हमेशा खतरे से घिरा रहता था।

उन्होंने पूर्व सरकारों पर लक्ष्य साधते हुए कहा,
“दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी और छत्तीसगढ़ में भाजपा की। केंद्र की उस सरकार ने दस साल बर्बाद कर दिए। अगर नीतियां समय पर बनतीं, तो नक्सलवाद बहुत पहले खत्म हो सकता था।”

“नक्सलवाद पर निर्णायक कार्रवाई के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति चाहिए”

रमन सिंह का मानना है कि नक्सलवाद से निपटने के लिए सिर्फ संसाधन नहीं, बल्कि मजबूत नीयत और स्पष्ट नीति की भी आवश्यकता होती है।
उन्होंने कहा कि आज स्थिति पहले से कहीं बेहतर है, क्योंकि सरकारें लगातार माओवादी नेटवर्क पर दबाव बनाए हुए हैं।

कॉन्क्लेव में सुनाई गई यह Raman Singh Maoist attack story छत्तीसगढ़ के नक्सल इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय दोबारा सामने लाती है।
यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत अनुभव नहीं, बल्कि उस समय की कठिन वास्तविकताओं को भी चित्रित करती है जब राज्य लगातार माओवादी हिंसा से जूझ रहा था।

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