नई दिल्ली। देश की संवैधानिक व्यवस्था से जुड़े एक बेहद अहम सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि संवैधानिक अदालतें राष्ट्रपति या राज्यपाल पर बिलों पर निर्णय लेने के लिए कोई तय समय सीमा नहीं लगा सकतीं। यह फैसला राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए Article 143(1) के तहत प्रेसीडेंशियल रेफरेंस पर आया है, जिसने राज्यपालों की भूमिका, बिलों पर ‘असेंट’ और टाइमलाइन को लेकर कई संवैधानिक संदेहों को दूर किया है।
फैसले की पृष्ठभूमि — तमिलनाडु मामला बना वजह
तमिलनाडु के कई बिलों पर राज्यपाल द्वारा लंबे समय तक निर्णय न लेने पर दो-न्यायाधीशीय पीठ ने समय सीमा तय कर दी थी। इसी फैसले ने एक बड़ा संवैधानिक प्रश्न खड़ा किया—क्या अदालतें राज्यपाल या राष्ट्रपति को समय सीमा में निर्णय लेने के लिए बाध्य कर सकती हैं?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मई 2025 में इस मुद्दे पर 14 सवालों का रेफरेंस सुप्रीम कोर्ट को भेजा था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा — मुख्य बिंदु
- SC ने कहा कि न्यायालय राज्यपाल या राष्ट्रपति पर कोई टाइमलाइन लागू नहीं कर सकता।
- अदालत केवल यह कह सकती है कि वे “उचित समय” में निर्णय लें।
- ‘डीम्ड असेंट’ देना अदालत का अधिकार नहीं — 2-न्यायाधीशीय पीठ द्वारा TN के 10 बिलों को स्वीकृति मानना असंवैधानिक कहा गया।
- राज्यपाल बिल को लौटा सकते हैं या राष्ट्रपति के लिए आरक्षित कर सकते हैं, यह उनका संवैधानिक विवेक है।
- अदालतें व्यक्तिगत रूप से राज्यपाल को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकतीं, पर उनके निर्णयों की समीक्षा कर सकती हैं।
- लंबी खामोशी या जानबूझकर देरी को अदालत सीमित दायरे में जांच सकती है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल अनिश्चित काल तक बिल लंबित नहीं रख सकते, उन्हें संवाद और सहयोग की भावना में काम करना होगा।
कोऑपरेटिव फेडरलिज्म की सीख
बेंच ने साफ कहा कि भारत के cooperative federal structure में राज्यपालों को “अवरोधक” की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। राज्य सरकारों और विधानसभाओं से संवाद, सुझाव और समाधान—यही रास्ता है।
यह निर्णय न सिर्फ संघीय ढांचे को मजबूत करता है, बल्कि राज्यपालों की भूमिका को भी संवैधानिक दायरे में परिभाषित करता है।
कोर्ट में क्या कहा गया
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल—दोनों ने इस फैसले को स्वागतयोग्य बताया।
CJI बी.आर. गवई ने कहा कि यह निर्णय पांचों जजों की सामूहिक सोच और एकमत दृष्टिकोण का परिणाम है।
यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
यह फैसला साफ करता है कि—
- विधानसभा द्वारा पारित कानूनों के भविष्य पर अनिश्चितता नहीं रहनी चाहिए।
- राज्यपालों की भूमिका न राजनीतिक हो, न अवरोधक।
- अदालतें संवैधानिक सीमाओं में रहकर ही दिशा दे सकती हैं।
यानी, यह फैसला भारतीय लोकतंत्र को और मजबूत करने वाला है।
