छत्तीसगढ़ विधानसभा का पुराना भवन आज बोलेगा आखिरी सत्र, 25 वर्षों की संसदीय यात्रा को याद करेगी सदन

रायपुर।
छत्तीसगढ़ विधानसभा का पुराना भवन आज एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने जा रहा है। मंगलवार को यहां Chhattisgarh Assembly special session आयोजित किया गया है, जो आने वाले वर्षों में भी याद रखा जाएगा। यह सत्र इसलिए खास है क्योंकि आगामी शीतकालीन सत्र अब नए विधानसभा भवन में आयोजित होगा। ऐसे में आज का दिन पुराने भवन को विदाई देने जैसा है।

25 वर्षों की संसदीय यात्रा का स्मरण

इस विशेष सत्र का विषय— ‘पच्चीस वर्षों की संसदीय यात्रा पर केंद्रित विषयों पर चर्चा’ रखा गया है।
सदन के भीतर आज प्रदेश के 25 वर्षों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास की यात्रा पर विस्तार से चर्चा की जा रही है।

विधायक अपने-अपने अनुभव साझा कर रहे हैं—
किस तरह एक नवगठित राज्य ने 2000 से 2025 तक संघर्ष, बदलाव, विकास और नई उम्मीदों की कहानी लिखी।
सदन का माहौल भावुक भी है, क्योंकि यह भवन हजारों बहसों, ऐतिहासिक प्रस्तावों और बड़े निर्णयों का साक्षी रहा है।

चार मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल, छह बार सत्ता परिवर्तन

छत्तीसगढ़ की स्थापना 1 नवंबर 2000 को मध्य प्रदेश से अलग होकर हुई।
तब से लेकर अब तक राज्य ने चार मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देखा—

  • अजीत जोगी
  • डॉ. रमन सिंह
  • भूपेश बघेल
  • विष्णुदेव साय

इन 25 वर्षों में छह बार सत्ता परिवर्तन हुआ, जिसमें दो बार कांग्रेस और चार बार भारतीय जनता पार्टी ने सरकार बनाई।
प्रदेश की राजनीतिक यात्रा उतार-चढ़ाव से भरी रही, पर लोकतांत्रिक परंपरा मजबूत होती चली गई।

जशपुर हॉल—जहां से शुरू हुई थी संसदीय परंपरा

छत्तीसगढ़ की संसदीय कहानी राजकुमार कॉलेज, रायपुर के जशपुर हॉल से शुरू हुई थी।
अस्थायी व्यवस्था के तहत यहां 14 से 19 दिसंबर 2000 तक पहला सत्र आयोजित किया गया।

यही वह जगह थी जहां—

  • छत्तीसगढ़ के पहले विधानसभा अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल सर्वसम्मति से चुने गए,
  • और जहां महेंद्र बहादुर सिंह को 2 नवंबर 2000 को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था।

जशपुर हॉल ने राज्य के कई ऐतिहासिक विधायी निर्णयों को जन्म लेते देखा। आज भी विधायकों के मन में उस दौर की यादें तरोताजा हैं।

पुराना विधानसभा भवन—आखिरी बार गूंजेगी बहस की आवाज

मंगलवार का विशेष सत्र इस भवन को भावनात्मक विदाई जैसा है।
पिछले 25 वर्षों में यहां—

  • हजारों प्रश्न पूछे गए
  • सैकड़ों बिल पास हुए
  • राजनीतिक विचारधाराएँ टकराईं
  • और लोकतंत्र मजबूत हुआ

आज इस भवन में कदम रखते ही विधायकों की आंखों में उस दौर की स्मृतियाँ तैर रही हैं।

अब जब शीतकालीन सत्र नए, आधुनिक और तकनीक-सक्षम भवन में आयोजित किया जाएगा, तो पुरानी इमारत की विरासत और भी अहम हो जाती है।

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