रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बिलासपुर के समग्र सरकारी भवन में दिव्यांग कर्मचारियों और आगंतुकों को हो रही गंभीर असुविधाओं पर कड़ा रुख अपनाया है। अदालत ने छह महीने से लिफ्ट बंद होने और बुनियादी सुविधाओं के अभाव को “जनहित का गंभीर मामला” बताते हुए स्वतः संज्ञान लिया है।
⚖️ अदालत का स्वतः संज्ञान: पीडब्ल्यूडी सचिव से मांगी शपथ-पत्र रिपोर्ट
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीर जनहित का विषय बताया। अदालत ने लोक निर्माण विभाग (PWD) सचिव को निर्देश दिया है कि वे व्यक्तिगत हलफनामा (affidavit) प्रस्तुत कर बताएं कि लिफ्ट की मरम्मत में इतना लंबा विलंब क्यों हुआ, नई लिफ्ट चालू करने में देरी के क्या कारण हैं, और कब तक दोनों लिफ्टें कार्यरत होंगी।
इसके साथ ही अदालत ने भवन में सुगम्यता और आवश्यक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों का भी विवरण मांगा है।
🏢 तीन मंजिला भवन में दिव्यांग कर्मचारी रोज चढ़ते हैं 72 सीढ़ियाँ
यह भवन 22 सरकारी विभागों का केंद्र है, जहां प्रतिदिन करीब 500 लोग, जिनमें 250 अधिकारी और 250 आम नागरिक शामिल हैं, काम के लिए आते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, लिफ्ट पिछले छह महीने से खराब है, जबकि नई लिफ्ट का काम ग्रेनाइट फिटिंग में देरी के कारण अधूरा पड़ा है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि चार दिव्यांग कर्मचारी रोजाना सीढ़ियाँ चढ़ने को मजबूर हैं। इनमें श्रम निरीक्षक संतोषी ध्रुव, जो बैसाखी का सहारा लेकर 24 सीढ़ियाँ चढ़कर अपने दफ्तर पहुंचती हैं, उनका संघर्ष सरकारी उपेक्षा की गवाही देता है।
💧 भवन में पीने के पानी की भी सुविधा नहीं
भवन में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। कर्मचारी आपस में पैसे मिलाकर बाजार से पानी की बोतलें खरीदते हैं। बताया गया कि यह भवन 2013 में लगभग 8 करोड़ रुपये की लागत से बना था, परंतु आज तक इसमें बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी बनी हुई है।
सरकारी नियमों के अनुसार, सभी सार्वजनिक भवनों में लिफ्ट, रैंप और व्हीलचेयर की व्यवस्था अनिवार्य है। यदि लिफ्ट खराब हो, तो अस्थायी व्यवस्था के तहत दिव्यांग कर्मचारियों के लिए ग्राउंड फ्लोर पर वैकल्पिक स्थान उपलब्ध कराया जाना चाहिए। लेकिन बिलासपुर भवन में ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया गया है।
🗣️ सरकार से जवाब तलब, अगली सुनवाई में रिपोर्ट पेश होगी
एडवोकेट जनरल प्रफुल्ल एन. भारत ने अदालत को बताया कि मामला दिव्यांग कर्मचारियों, गर्भवती महिलाओं और आम नागरिकों के लिए गंभीर असुविधा से जुड़ा है। अदालत ने उन्हें संबंधित विभागों से विस्तृत जानकारी लेकर अगली सुनवाई में पेश करने का निर्देश दिया।
🧾 हाईकोर्ट ने कहा – ‘यह केवल सुविधा का नहीं, गरिमा का प्रश्न है’
अदालत ने टिप्पणी की कि “यह सिर्फ सुविधा का नहीं, बल्कि गरिमा और समान अवसर का प्रश्न है।” अदालत ने यह भी कहा कि सरकारी विभागों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सुगम्यता अधिकार केवल कागज़ पर नहीं, व्यवहार में दिखे।
