“हम हैं मदर ऑफ डेमोक्रेसी”: व्यंग्य में लोकतंत्र की सच्चाई उजागर करते राजेंद्र शर्मा और विष्णु नागर

भारतीय लोकतंत्र को अक्सर “Mother of Democracy” यानी लोकतंत्र की जननी कहा जाता है। लेकिन जब व्यंग्यकार राजेंद्र शर्मा और विष्णु नागर इसी वाक्य को अपने शब्दों में पलट देते हैं, तो यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक आईना बन जाता है — जिसमें लोकतंत्र की हकीकत साफ झलकती है।


🪞 राजेंद्र शर्मा का व्यंग्य: “हम हैं मदर ऑफ डेमोक्रेसी”

राजेंद्र शर्मा ने अपने लेख में चुनावी व्यवस्थाओं और मतदाता सूचियों के “अंतरराष्ट्रीयकरण” पर तीखा व्यंग्य किया है। वे लिखते हैं कि जब हरियाणा की मतदाता सूची में ब्राजील की मॉडल तक का नाम आ जाए, तो फिर कौन कहेगा कि भारत “Mother of Democracy” नहीं है?

उनका व्यंग्य यह दिखाता है कि लोकतंत्र का गर्व अब साक्ष्यों और ईमानदारी पर नहीं, बल्कि गिनती और दिखावे पर टिका हुआ है।
लेख में मतदाता सूचियों की गड़बड़ियों, ईवीएम विवादों और चुनाव आयोग की चुप्पी पर कटाक्ष करते हुए वे कहते हैं —

“जब ब्राजील की मॉडल हमारे वोटों को सहारा दे रही हैं, तब दुनिया झख मारकर मानेगी — यही है मदर ऑफ डेमोक्रेसी!”


🗣️ विष्णु नागर का जवाब: “हम सच नहीं बोलेंगे”

विष्णु नागर ने अपने व्यंग्य में झूठ और सत्ता के रिश्ते को बेबाकी से उजागर किया है।
वे लिखते हैं —

“चाहे जितना एक्सपोज़ कर दो, झूठ तो हम बोलेंगे ही, फ्रॉड तो हम करेंगे ही!”

उनका यह लेख आधुनिक राजनीति में सच और झूठ की लड़ाई का आईना है। नागर का व्यंग्य सिर्फ एक दल या व्यक्ति पर नहीं, बल्कि उस मानसिकता पर प्रहार है, जिसने झूठ को सामान्य बना दिया है।
वे बताते हैं कि झूठ अब सिर्फ भाषणों में नहीं, बल्कि संस्थाओं, मीडिया और शिक्षा तक में पसर चुका है।


🔍 साहित्य के ज़रिए लोकतंत्र का आत्मनिरीक्षण

दोनों लेख इस बात की मिसाल हैं कि व्यंग्य केवल हंसी के लिए नहीं, बल्कि सच्चाई को कुरेदने का माध्यम भी है।
राजेंद्र शर्मा का “हम हैं मदर ऑफ डेमोक्रेसी” और विष्णु नागर का “हम सच नहीं बोलेंगे” — दोनों ही भारतीय लोकतंत्र की उस स्थिति की ओर इशारा करते हैं, जहां लोकतंत्र एक स्लोगन बन गया है, जबकि जनता उसकी आत्मा खोज रही है।


🌏 “Mother of Democracy satire” का सार

इन व्यंग्यों में लोकतंत्र की बदलती आत्मा, वोटर लिस्ट की विसंगतियाँ, और राजनीतिक झूठ की संस्कृति पर सवाल उठाए गए हैं।
यह सिर्फ आलोचना नहीं, बल्कि समाज के लिए चेतावनी भी है —
कि अगर नागरिक सजग नहीं होंगे, तो लोकतंत्र का “मदर” रूप धीरे-धीरे “मिरर” यानी एक खोखला प्रतिबिंब बन जाएगा।


🪶 निष्कर्ष

राजेंद्र शर्मा और विष्णु नागर का व्यंग्य हमें याद दिलाता है कि सत्य बोलना अब साहस का काम है
“Mother of Democracy satire” केवल हंसी नहीं, बल्कि एक गहरी पुकार है —
कि लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो उसे सिर्फ शब्दों से नहीं, सत्य से सींचना होगा।

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