बस्तर में Special Intensive Revision (SIR) सर्वे पर विरोध तेज, मनीष कुंजाम बोले– यह ग्रामीणों के लिए विनाशकारी कदम

रायपुर/ 9 नवम्बर 2025:
छत्तीसगढ़ में Special Intensive Revision (SIR) सर्वे को लेकर अब बस्तर में विरोध के स्वर तेज हो गए हैं। बस्तरिया राज मोर्चा के संयोजक और पूर्व विधायक मनीष कुंजाम ने इस सर्वे को ग्रामीणों के लिए विनाशकारी कदम बताते हुए खुला विरोध शुरू कर दिया है।
उन्होंने कहा कि प्रशासन जल्दबाजी में डेटा इकट्ठा कर रहा है, जिससे हजारों लोग सरकारी रजिस्टर से बाहर हो सकते हैं।


⚠️ “यह सर्वे ग्रामीणों के लिए घातक साबित होगा” — मनीष कुंजाम

मनीष कुंजाम ने कहा कि वर्तमान समय में SIR सर्वे कराना पूरी तरह असमय और अनुचित कदम है। उन्होंने बताया कि देश के कई राज्यों में इस प्रक्रिया को लेकर सवाल उठे हैं और इसकी वैधता सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है।
उन्होंने कहा, “छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव 2028 में होने हैं। ऐसे में अभी सर्वे कराना समझ से परे है और यह ग्रामीण इलाकों के लिए खतरनाक परिणाम दे सकता है।”


🌾 खेती के मौसम में सर्वे से बढ़ी मुश्किलें

कुंजाम ने सवाल उठाया कि जब किसान खेतों में काम कर रहे हैं, तब सर्वे टीमें गांवों में डेटा कैसे इकट्ठा करेंगी? उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में ग्रामीण अपने खेतों में व्यस्त हैं और कई गांव खाली मिल रहे हैं।
ऐसे में बीएलओ टीमों के लिए सही जानकारी जुटाना मुश्किल होगा, जिससे गलत या अधूरे डेटा के कारण हजारों लोगों के नाम सूची से हट सकते हैं।


🧾 “यह नागरिकता जांच जैसी प्रक्रिया लगती है”

कुंजाम ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि बस्तर के छह नक्सल प्रभावित जिलों में आज भी हजारों ग्रामीणों के पास आवश्यक सरकारी दस्तावेज नहीं हैं।
उन्होंने कहा, “दशकों तक नक्सली हिंसा के कारण प्रशासन इन इलाकों तक नहीं पहुंच सका। अब जब शांति बहाल हो रही है, इस समय ऐसा सर्वे करना भ्रम और भय फैलाने वाला है।”
कुंजाम के मुताबिक, SIR प्रक्रिया नागरिकता जांच जैसी लग रही है। अगर किसी ग्रामीण का नाम रजिस्टर से बाहर रह गया, तो वह सरकारी योजनाओं और नागरिक अधिकारों से वंचित हो सकता है।


🌍 जहां प्रशासन नहीं पहुंचा, वहां सर्वे कैसे संभव?

कुंजाम ने सवाल उठाया कि कोंटा, गोलापल्ली, किस्ताराम और माड़ जैसे सुदूर इलाकों में अब तक शासन-प्रशासन की नियमित पहुंच नहीं है।
उन्होंने कहा, “यदि इन क्षेत्रों में अभी सर्वे कराया गया, तो एक लाख से अधिक ग्रामीणों के नाम सूची से गायब हो सकते हैं। केवल सुकमा जिले में ही करीब 40 हजार लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हट सकता है।”
उन्होंने यह भी बताया कि कई ग्रामीणों के पास सिर्फ वन अधिकार पट्टा ही दस्तावेज के रूप में है, बाकी लोग उससे भी वंचित हैं।


🗣️ “SIR सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे”

पूर्व विधायक कुंजाम ने स्पष्ट किया कि यदि Special Intensive Revision Survey इसी तरह जारी रहा, तो वे इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे।
उन्होंने कहा, “2028 के चुनाव से छह महीने पहले यह प्रक्रिया कराएं, अभी नहीं। वर्तमान में यह पूरी तरह षड्यंत्रकारी है और बस्तर के लिए बड़ा खतरा बन सकती है।”
उन्होंने शासन से अपील की कि पहले प्रशासनिक पहुंच और दस्तावेजी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए, फिर इस तरह के सर्वे को लागू किया जाए।


🧩 जनभावनाओं में बढ़ती चिंता

बस्तर के कई सामाजिक संगठनों ने भी SIR सर्वे को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि प्रक्रिया की पारदर्शिता और स्थानीय दस्तावेजों की वैधता सुनिश्चित किए बिना सर्वे कराना सामाजिक असंतोष को जन्म दे सकता है।
स्थानीय लोगों ने मांग की है कि शासन ग्रामीणों को स्पष्ट जानकारी दे कि सर्वे का वास्तविक उद्देश्य क्या है और इसका उनके अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।


निष्कर्ष:
बस्तर में SIR सर्वे के विरोध ने प्रशासन के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। मनीष कुंजाम और स्थानीय संगठनों के आरोपों ने इस सर्वे की पारदर्शिता और समय को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। अब देखना यह होगा कि राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग इस बढ़ते विरोध पर क्या रुख अपनाते हैं।

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