रायपुर, 31 अक्टूबर 2025।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अब धरना या प्रदर्शन करना महंगा पड़ सकता है। नगर निगम ने एक विवादास्पद प्रस्ताव पास करते हुए खुले सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शन या सभा करने पर ₹500 का टैक्स लगाने का निर्णय लिया है।
नगर निगम की आमसभा में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि जो भी व्यक्ति या संगठन खुले क्षेत्र में पंडाल या मंच लगाएगा, उसे ₹5 प्रति वर्ग फुट के हिसाब से शुल्क देना होगा। नगर निगम का कहना है कि यह शुल्क सफाई और रखरखाव के लिए लिया जा रहा है, लेकिन विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे “विरोध पर टैक्स” कहकर कड़ा विरोध जताया है।
🗣️ विपक्ष का आरोप: ‘लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला’
कांग्रेस और अन्य विपक्षी नेताओं ने इस फैसले को अलोकतांत्रिक और जनविरोधी बताया। उन्होंने कहा कि सरकार पहले ही नया रायपुर के तुता धरना स्थल पर विरोध प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगा चुकी है, और अब इस टैक्स से जनता की आवाज़ को और दबाने की कोशिश की जा रही है।
एक नागरिक कार्यकर्ता ने कहा,
“सफाई और रखरखाव सरकार की जिम्मेदारी है, न कि जनता से टैक्स लेकर विरोध को सीमित करने का तरीका।”
🏛️ नगर निगम और प्रशासन का पक्ष
रायपुर की महापौर मीनल चौबे ने इस निर्णय का बचाव करते हुए कहा कि यह कदम राज्य सरकार के निर्देशों के तहत उठाया गया है।
उन्होंने कहा,
“सरकार ने ऐसे आयोजनों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं। जब प्रदर्शन होता है, तो पहले से रास्ते तय होते हैं और बाद में सफाई की व्यवस्था करनी पड़ती है। इसलिए यह शुल्क प्रशासनिक व्यवस्था के तहत लिया जा रहा है।”
सूत्रों के मुताबिक, फिलहाल यह शुल्क ₹500 रखा गया है, लेकिन आने वाले दिनों में इसे ₹1,000 तक बढ़ाने का प्रस्ताव भी पास किया गया है।
🚫 नया रायपुर में दो महीने तक विरोध पर रोक
रायपुर कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह ने हाल ही में अटल नगर (नया रायपुर) में सभी प्रकार के विरोध-प्रदर्शनों पर दो महीने के लिए अस्थायी प्रतिबंध लगाया है। यह निर्णय क्षेत्र में रखरखाव कार्यों के चलते लिया गया है।
हालांकि, इस दौरान किसी वैकल्पिक विरोध स्थल की अनुमति नहीं दी गई है, जिसका अर्थ है कि अगले दो महीनों तक राजधानी में कहीं भी आधिकारिक रूप से धरना या प्रदर्शन नहीं किया जा सकेगा।
⚖️ जनता की आवाज़ पर सवाल
राजधानी में इस फैसले को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। नागरिक समाज संगठनों का कहना है कि सरकार लोकतंत्र की मूल भावना—“विचारों की अभिव्यक्ति”—को कमजोर कर रही है।
एक छात्र संगठन के प्रतिनिधि ने कहा,
“अब जनता को अपनी बात कहने के लिए भी टैक्स देना पड़ेगा, यह लोकतंत्र नहीं, नियंत्रण का तरीका है।”
