भारत के हर प्रांत की तरह छत्तीसगढ़ में भी दीपावली का पर्व बड़े उत्साह और भव्यता से मनाया जाता है, लेकिन यहां की दीपावली को एक खास परंपरा और भी अनोखा बना देती है — धान की बालियों को घर के द्वार पर लटकाना।
यह परंपरा न केवल सजावट का हिस्सा है, बल्कि सौभाग्य, समृद्धि और शुभता का प्रतीक मानी जाती है।
🌾 धान की बालियों से सजे घर
दीपावली के पावन अवसर पर छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में लगभग हर घर के मुख्य द्वार पर नई फसल की धान की बालियां सजा दी जाती हैं।
इन बालियों को ग्रामीण महिलाएं धागों में पिरोकर या कलात्मक रूपों में तैयार करती हैं और दरवाजे पर लटकाती हैं।
त्योहार के दिनों में बाजारों में भी इन सजी हुई धान की बालियों की रौनक देखने लायक होती है। ग्रामीण कारीगर इन्हें प्रेम और परिश्रम से तैयार कर बेचते हैं।
🙏 परंपरा के पीछे की मान्यता
इस अनूठी परंपरा के पीछे गहरी लोकमान्यताएं हैं।
ग्रामीणों का मानना है कि धान की बालियां घर के पास चिड़ियों को आकर्षित करती हैं, और चिड़ियों का आगमन शुभता का संकेत माना जाता है।
जहां चिड़ियों की चहचहाहट होती है, वहां सकारात्मक ऊर्जा और सुख-शांति का वास होता है।
💰 माता लक्ष्मी के स्वागत की प्रतीक
दीपावली धन और समृद्धि की देवी माता लक्ष्मी के पूजन का पर्व है।
ऐसा विश्वास है कि घर के बाहर सजी हुई धान की बालियां देवी लक्ष्मी के आगमन का निमंत्रण होती हैं।
धान छत्तीसगढ़ की मुख्य फसल और समृद्धि का प्रतीक है।
नई धान की बालियों को सजाकर ग्रामीण लोग आने वाले वर्ष के लिए अच्छी फसल, खुशहाली और सौभाग्य की कामना करते हैं।

🌼 संस्कार और प्रकृति के प्रति सम्मान
यह परंपरा सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान और अन्न की कद्र का भी प्रतीक है।
धान की बालियां सजाना एक ऐसा संवेदनशील सांस्कृतिक भाव है जो लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ता है और मेहनत से उपजाए अन्न के प्रति आभार व्यक्त करता है।
यह परंपरा आज भी ग्रामीण समाज में जीवित सांस्कृतिक धरोहर के रूप में कायम है।
🌟 लोगों की भावना
ग्रामीणों का कहना है कि जब तक घर के द्वार पर धान की बालियां नहीं सजतीं, तब तक दीपावली अधूरी लगती है।
यह परंपरा न केवल घर को सुंदर बनाती है बल्कि यह विश्वास भी जगाती है कि “जहां अन्न का सम्मान होता है, वहां लक्ष्मी स्वयं निवास करती हैं।”
