रायपुर, 17 अक्टूबर 2025 Naxalites surrender in Bastar।
छत्तीसगढ़ के बस्तर में शुक्रवार का दिन इतिहास में दर्ज हो गया। लंबे समय से हिंसा और भय से जूझ रहे इस क्षेत्र में आज 208 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर लोकतंत्र और संविधान का रास्ता चुना।
सभी नक्सली जगदलपुर में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय संविधान की प्रति हाथ में लेकर मुख्यधारा में लौटे।
इनमें 110 महिलाएँ और 98 पुरुष शामिल हैं। आत्मसमर्पण करने वालों में एक सेंट्रल कमेटी सदस्य, चार दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी सदस्य, एक रीजनल कमेटी सदस्य, 21 डिविजनल कमेटी सदस्य, 61 एरिया कमेटी सदस्य और 98 पार्टी सदस्य शामिल हैं।
🔹 डीजीपी अरुण देव गौतम ने कही भावनात्मक बात
छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक श्री अरुण देव गौतम ने इस मौके पर कहा —
“जो युवा पहले यह मानते थे कि वे बस्तर के लोगों के लिए लड़ रहे हैं, उन्होंने अब सच्चाई देख ली है कि हिंसा से सिर्फ नुकसान हुआ। अब अगर सब मिलकर काम करें, तो बस्तर विकास की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ेगा।”
उन्होंने कहा कि यह आत्मसमर्पण केवल एक रणनीति नहीं, बल्कि बस्तर में शांति और विश्वास की नई नींव है।
🔹 153 हथियार किए जमा
आत्मसमर्पित नक्सलियों ने 153 हथियार भी पुलिस को सौंपे।
इनमें 19 AK-47 राइफल, 17 SLR, 23 INSAS राइफल, एक LMG, 36 .303 राइफल, 4 कार्बाइन, 11 BGL लॉन्चर, 41 शॉटगन और एक पिस्तौल शामिल हैं।
अधिकारियों के अनुसार, यह अब तक का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण अभियान है, जो राज्य सरकार की नक्सल उन्मूलन और पुनर्वास नीति 2025 की सफलता का प्रमाण है।
🔹 अबूझमाड़ हुआ नक्सल मुक्त
अधिकारियों ने बताया कि इस आत्मसमर्पण के बाद उत्तर बस्तर और अबूझमाड़ क्षेत्र लगभग नक्सलमुक्त हो गए हैं।
अब केवल दक्षिण बस्तर का कुछ हिस्सा प्रभावित है।
यह क्षेत्र वर्षों से नक्सली आतंक का केंद्र रहा है।
🔹 अमित शाह ने बताया “ऐतिहासिक दिन”
केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा था कि पिछले दो दिनों में छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में कुल 258 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है।
उन्होंने इस अवसर को देश की नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई का “ऐतिहासिक दिन” बताया और कहा कि —
“नक्सलवाद अब अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है।”
🔹 बस्तर में लौट रहा है विश्वास
डीजीपी गौतम ने कहा कि पहले जिन इलाकों में गोलियों की आवाज़ गूंजती थी, वहाँ अब बच्चे स्कूल जा रहे हैं और खेतों में फसल लहलहा रही है।
यह आत्मसमर्पण केवल हथियार डालने का नहीं, बल्कि विश्वास और पुनर्जागरण का प्रतीक है।
