अबूझमाड़ में माओवादी कमांडर भूपति ने थामा शांति का रास्ता, 200 से ज्यादा नक्सली लड़ाके आत्मसमर्पण को तैयार

Maoist commander Bhupathi surrender Abujmarh:
अबूझमाड़ के घने जंगलों से एक बड़ी खबर आई है। शीर्ष माओवादी कमांडर भूपति ने शांति का रास्ता चुनते हुए 200 से अधिक नक्सली लड़ाकों की जान बचा ली है।
सूत्रों के अनुसार, पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) के करीब 200 आदिवासी लड़ाके अब आत्मसमर्पण की तैयारी में हैं, जबकि 100 अन्य ने भी सरकार की शांति पहल स्वीकार कर ली है।


🔫 अबूझमाड़ में फंसे थे नक्सली, ऑपरेशन ‘कागर’ जारी

अबूझमाड़ में इन दिनों अंतरराज्यीय कमांडो बलों की कार्रवाई तेज है। केंद्र सरकार के नेतृत्व में चल रहे ‘ऑपरेशन कागर’ के तहत सुरक्षा बल अबूझमाड़ के भीतर माओवादियों के गढ़ को घेर रहे हैं।
इसी दौरान भूपति ने अपने साथियों को संदेश दिया कि अब संघर्ष बंद करने का वक्त है, क्योंकि लगातार हो रही झड़पों में आदिवासी युवाओं की जान जा रही थी।


🗣️ भूपति का भावुक संदेश: “हमारे भाईयों का खून अब न बहे”

कुछ महीनों पहले भूपति ने एक प्रेस नोट जारी करते हुए लिखा था —
“हमारे आदिवासी भाइयों का खून बह रहा है, हमारे युवा बिना किसी कारण मारे जा रहे हैं।”
उन्होंने युद्धविराम और वार्ता की अपील की थी। इस फैसले को कई अधिकारियों ने “साहसिक और मानवीय कदम” बताया है।


🕊️ गडचिरोली में आत्मसमर्पण, और भी हो सकते हैं शामिल

जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ के रोही दलम से जुड़े कई कैडर भूपति के साथ गडचिरोली में आत्मसमर्पण कर चुके हैं।
वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया,
“अगर भूपति हथियार नहीं डालता, तो यह आत्मघाती होता। मौजूदा स्थिति में PLGA की ताकत कम हो चुकी थी और जवान अबूझमाड़ के कोर इलाके में प्रवेश की तैयारी में थे।”


🏞️ आदिवासी गांवों को बचाया, निर्दोषों की जान सुरक्षित

भूपति के इस निर्णय से न सिर्फ सैकड़ों नक्सली लड़ाकों की जान बची है, बल्कि अबूझमाड़ के पहाड़ी गांवों में रहने वाले निर्दोष आदिवासियों को भी संभावित मुठभेड़ से राहत मिली है।
अधिकारियों का मानना है कि अगर लड़ाई जारी रहती, तो गांवों पर छापे पड़ते और कई निर्दोष लोग गोलियों की जद में आ जाते।


⚔️ ऑपरेशन कागर का असर

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के निर्देशन में चल रहा ‘ऑपरेशन कागर’ अब माओवादियों के खिलाफ निर्णायक मोड़ पर है।
भूपति का आत्मसमर्पण इस ऑपरेशन की सबसे बड़ी सफलता माना जा रहा है, क्योंकि यह संदेश देता है कि जंगल में हथियार की नहीं, संवाद की जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *