Bihar economic development: बिहार की अर्थव्यवस्था लंबे समय से राष्ट्रीय औसत से पीछे रही है—चाहे बात आय, शिक्षा, रोजगार या औद्योगिकीकरण की हो। लेकिन हाल के वर्षों में राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और युवा आबादी की बढ़ती भागीदारी ने एक नई उम्मीद जगाई है। आज बिहार के सामने चुनौती भी है और अवसर भी—अगर इन्हें सही दिशा दी जाए तो राज्य आने वाले दशक में आर्थिक विकास का नया मॉडल बन सकता है।
💹 आय और रोजगार का बदलता परिदृश्य
1960 के दशक में बिहार की प्रतिव्यक्ति आय भारत के औसत का करीब 54% थी, लेकिन अब यह घटकर मात्र 32% रह गई है। इससे स्पष्ट है कि आर्थिक विकास की गति धीमी रही है।
राज्य के 15 से 29 वर्ष के युवाओं में बेरोजगारी दर 16.7% है, जो चिंताजनक है। उद्योग और निवेश के अवसरों की कमी के कारण बड़ी संख्या में युवा रोजगार की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।
📚 शिक्षा और जनसंख्या की दोहरी चुनौती
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता अभी भी गहरी है। मिडिल स्तर पर ड्रॉपआउट दर 25.9% और सेकेंडरी स्तर पर 20.9% है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
इसके साथ ही, राज्य की कुल प्रजनन दर 2.8 है और यहां हर पाँच में से दो व्यक्ति युवा हैं। यह स्थिति एक ओर जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती पेश करती है, वहीं दूसरी ओर यह युवा शक्ति बिहार की सबसे बड़ी पूंजी भी है।
🏥 स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार
पिछले कुछ वर्षों में बिहार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। मृत्यु दर अब 6.1 और शिशु मृत्यु दर (IMR) 23 हो गई है—जो राष्ट्रीय औसत से थोड़ी बेहतर है।
यह दिखाता है कि सरकारी योजनाएँ और स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार राज्य को एक स्वस्थ समाज की दिशा में आगे बढ़ा रहे हैं।
🌱 उम्मीदों की नई दिशा: युवा शक्ति से विकास
बिहार के पास आज सबसे बड़ी ताकत उसकी युवा आबादी है। यदि इन युवाओं को तकनीकी शिक्षा, स्टार्टअप अवसर और उद्योगों में रोजगार के साथ जोड़ा जाए तो राज्य की Bihar economic development की दिशा तेजी से बदल सकती है।
स्वास्थ्य और शिक्षा में किए गए सुधार इस विकास को स्थायी बना सकते हैं।
भविष्य के लिए बिहार के पास यह सुनहरा अवसर है—जहाँ जनसंख्या चुनौती को जनसंख्या शक्ति में बदला जा सकता है। यही युवा बिहार की नई पहचान और विकास का आधार बन सकते हैं।
