रायपुर Children living in jail with mothers।
छत्तीसगढ़ में 50 से अधिक मासूम बच्चे जेल की चारदीवारी में अपना बचपन गुज़ार रहे हैं। ये वे बच्चे हैं जिन्हें किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराया गया, परंतु अपनी मां के जुर्म की सजा साथ में भुगतने को मजबूर हैं।
लोहे की बैरकों और ऊँची दीवारों के बीच खेलना, हँसना, और सीखना – यही इन बच्चों की दिनचर्या बन चुकी है।
👩👧 महिला कैदियों के साथ बच्चे भी रह रहे हैं जेल में
नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, छत्तीसगढ़ की विभिन्न जेलों में 60 महिला कैदी ऐसी हैं जिनके साथ 6 साल से कम उम्र के बच्चे रह रहे हैं।
इन बच्चों के लिए अलग बैरक बनाई गई है ताकि उन्हें अन्य कैदियों से अलग वातावरण मिल सके।
नियमों के अनुसार, 6 वर्ष तक के बच्चों को मां के साथ जेल में रहने की अनुमति होती है।
📊 देशभर की स्थिति भी चिंताजनक
रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2023 में पूरे देश में 1,318 महिला कैदी थीं जो अपने 1,492 बच्चों के साथ जेल में रह रही थीं।
इनमें से 1,049 महिलाएं विचाराधीन बंदी थीं, यानी जिन पर मुकदमा चल रहा था, और उनके साथ 1,191 बच्चे रह रहे थे।
वहीं, 249 महिलाएं दोषसिद्ध थीं जिनके साथ 272 बच्चे जेलों में बंद थे।
🏚️ छत्तीसगढ़ की जेलों में सुविधाओं का अभाव
जेल प्रशासन द्वारा इन बच्चों को खेलने, पढ़ने और स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा देने का दावा तो किया जाता है, लेकिन वास्तविक स्थिति संतोषजनक नहीं है।
अधिकांश जेलों में शिक्षा और पोषण की सुविधाएं सीमित हैं, जिससे बच्चों का सामाजिक और मानसिक विकास प्रभावित हो रहा है।
🧒 कैद की दीवारों के बीच बचपन
एक जेल अधिकारी ने बताया कि “हम कोशिश करते हैं कि बच्चों को सामान्य माहौल मिले, पर जेल का वातावरण कभी भी घर जैसा नहीं हो सकता।”
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे बच्चों के लिए डे-केयर सेंटर, प्ले ज़ोन और काउंसलिंग सुविधा जरूरी है ताकि वे समाज में लौटने पर मानसिक संतुलन और आत्मविश्वास बनाए रख सकें।
🕊️ मानवाधिकार आयोग और सामाजिक संगठनों की मांग
सामाजिक कार्यकर्ता और बाल अधिकार संगठनों ने राज्य सरकार से मांग की है कि इन बच्चों के लिए अलग पुनर्वास केंद्र बनाए जाएं, जहां उन्हें शिक्षा, पोषण और मानसिक समर्थन मिल सके।
वे कहते हैं, “जेल में रहना बच्चों का भाग्य नहीं होना चाहिए — उन्हें बचपन का अधिकार मिलना चाहिए।”
