दिल्ली में वकील ने चीफ जस्टिस बी.आर. गवई पर फेंका जूता, ‘सनातन धर्म’ पर टिप्पणी से भड़का गुस्सा

lawyer throws shoe at Chief Justice BR Gavai दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत में सोमवार को उस समय हड़कंप मच गया जब एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई पर जूता फेंक दिया। यह घटना कोर्ट रूम के भीतर सुनवाई के दौरान हुई, जब वकील राकेश किशोर अचानक अपनी सीट से उठे और न्यायमूर्ति पर जूता फेंकते हुए बोले – “भारत सनातन धर्म का अपमान बर्दाश्त नहीं करेगा।”

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, जूता न्यायमूर्ति गवई और उनके साथ बैठे एक अन्य न्यायाधीश के पास से गुजरते हुए पीछे गिर गया। अदालत की सुरक्षा टीम ने तुरंत राकेश किशोर को हिरासत में ले लिया और उन्हें बाहर ले जाया गया।


घटना का कारण – ‘विष्णु भगवान’ पर की गई टिप्पणी से नाराज़गी

दरअसल, कुछ दिन पहले चीफ जस्टिस गवई ने मध्य प्रदेश के एक मंदिर में भगवान विष्णु की सात फुट ऊंची मूर्ति के पुनर्निर्माण से जुड़ी याचिका को खारिज करते हुए कहा था – “यह जनहित नहीं, पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन है… जाओ, खुद भगवान से कहो कुछ करें।”

इस टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर काफी विरोध हुआ, कई लोगों ने आरोप लगाया कि न्यायमूर्ति ने हिंदू आस्था का मज़ाक उड़ाया। इसी से नाराज़ होकर राकेश किशोर ने यह कदम उठाया। उन्होंने कहा कि “मैं 16 सितंबर से सो नहीं पाया हूं, जब जस्टिस गवई ने भगवान विष्णु पर वह टिप्पणी की थी।”


कोर्ट में शांति बनाए रखी गई

घटना के दौरान कोर्ट रूम में मौजूद वकीलों ने बताया कि जूता फेंके जाने के बाद भी मुख्य न्यायाधीश ने पूरी तरह संयम बनाए रखा। उन्होंने वकीलों से कहा कि “आप अपनी बहस जारी रखें, इस घटना से ध्यान न भटकाएं।”

कोर्ट प्रशासन ने बाद में पुष्टि की कि राकेश किशोर को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया है, हालांकि उन पर कोई आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं किया गया।


प्रधानमंत्री मोदी ने की निंदा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना को “अत्यंत निंदनीय” बताया और कहा कि उन्होंने खुद चीफ जस्टिस गवई से बात की है। पीएम मोदी ने कहा – “ऐसे कृत्य हमारे समाज में किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं हैं। यह घटना हर भारतीय को आक्रोशित करती है।”


जूता फेंकना क्यों है बड़ा अपमान

भारत और कई अन्य देशों में किसी व्यक्ति पर जूता फेंकना एक बड़ा सार्वजनिक अपमान माना जाता है। यह न केवल विरोध का तरीका होता है बल्कि इसे सम्मान का हनन भी माना जाता है।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट में हुई यह अभूतपूर्व घटना भारतीय न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठाती है। हालांकि मुख्य न्यायाधीश की शांत प्रतिक्रिया ने न्यायिक व्यवस्था के धैर्य और मर्यादा का उदाहरण पेश किया। अब देशभर में इस पर बहस जारी है कि आस्था और न्याय के बीच की सीमा रेखा कहाँ खींची जाए।

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