रायपुर, 26 सितंबर 2025: पति-पत्नी के बीच कटु शब्दों का प्रयोग आम बात समझा जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसे गंभीर मानसिक क्रूरता मानते हुए विवाह विच्छेद को सही ठहराया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय सामाजिक परिप्रेक्ष्य में पति को माता-पिता छोड़ने के लिए मजबूर करना मानसिक उत्पीड़न है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 2019 के परिवार न्यायालय के आदेश से जुड़ा है, जिसमें विवाह को भंग करने का निर्णय दिया गया था। पत्नी ने उस आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन 3 सितंबर को न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने अपील खारिज कर दी।
पति का आरोप
पति ने अदालत में दावा किया कि उसकी पत्नी अक्सर उसे अपने माता-पिता के खिलाफ भड़काती थी, उनसे अलग रहने पर जोर देती थी, और जब उसने ऐसा करने से मना किया तो वह आक्रामक हो जाती थी।
- उसने गर्भावस्था के दौरान आत्महत्या का प्रयास करने की भी कोशिश की।
- कई बार पति को “पालतु चूहा” (Pet Rat) कहकर अपमानित किया, क्योंकि वह माता-पिता की बात मानता था।
- परिजनों और गवाहों ने भी बताया कि पत्नी ने बुजुर्गों का अनादर किया और संयुक्त परिवार में सामंजस्य बैठाने से इंकार कर दिया।
पत्नी का पक्ष
पत्नी ने अदालत में स्वीकार किया कि उसने पति को संदेश भेजा था — “अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ रहो।” उसने दांपत्य संबंध बहाल करने की अपील की, लेकिन अदालत ने माना कि उसका आचरण उसके दावे के विपरीत है।
अदालत का निर्णय
खंडपीठ ने कहा, “भारतीय समाज में माता-पिता को छोड़ने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।” अदालत ने यह भी माना कि पत्नी का लंबे समय तक मायके में रहना (सिर्फ 2011 में संक्षिप्त अवधि के लिए लौटना छोड़कर) त्याग (desertion) की कानूनी कसौटी को पूरा करता है।
आर्थिक प्रावधान
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए विवाह विच्छेद को मान्यता दी और पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 5 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण (permanent alimony) के रूप में दे।
सामाजिक संदर्भ
यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल माना जा रहा है जहां दांपत्य जीवन में आपसी सम्मान और परिवार के प्रति जिम्मेदारी को लेकर विवाद उत्पन्न होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वैवाहिक जीवन में कटुता और अपमानजनक शब्द केवल निजी झगड़ा नहीं, बल्कि मानसिक उत्पीड़न का गंभीर मामला भी बन सकता है।
पत्नी ने पति को कहा “पालतु चूहा”, हाईकोर्ट ने माना क्रूरता, विवाह विच्छेद पर मुहर
रायपुर, 26 सितंबर 2025: पति-पत्नी के बीच कटु शब्दों का प्रयोग आम बात समझा जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसे गंभीर मानसिक क्रूरता मानते हुए विवाह विच्छेद को सही ठहराया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि भारतीय सामाजिक परिप्रेक्ष्य में पति को माता-पिता छोड़ने के लिए मजबूर करना मानसिक उत्पीड़न है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 2019 के परिवार न्यायालय के आदेश से जुड़ा है, जिसमें विवाह को भंग करने का निर्णय दिया गया था। पत्नी ने उस आदेश को चुनौती दी थी, लेकिन 3 सितंबर को न्यायमूर्ति रजनी दुबे और न्यायमूर्ति अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की खंडपीठ ने अपील खारिज कर दी।
पति का आरोप
पति ने अदालत में दावा किया कि उसकी पत्नी अक्सर उसे अपने माता-पिता के खिलाफ भड़काती थी, उनसे अलग रहने पर जोर देती थी, और जब उसने ऐसा करने से मना किया तो वह आक्रामक हो जाती थी।
पत्नी का पक्ष
पत्नी ने अदालत में स्वीकार किया कि उसने पति को संदेश भेजा था — “अपने माता-पिता को छोड़कर मेरे साथ रहो।” उसने दांपत्य संबंध बहाल करने की अपील की, लेकिन अदालत ने माना कि उसका आचरण उसके दावे के विपरीत है।
अदालत का निर्णय
खंडपीठ ने कहा, “भारतीय समाज में माता-पिता को छोड़ने के लिए मजबूर करना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।” अदालत ने यह भी माना कि पत्नी का लंबे समय तक मायके में रहना (सिर्फ 2011 में संक्षिप्त अवधि के लिए लौटना छोड़कर) त्याग (desertion) की कानूनी कसौटी को पूरा करता है।
आर्थिक प्रावधान
हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए विवाह विच्छेद को मान्यता दी और पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी को 5 लाख रुपये स्थायी भरण-पोषण (permanent alimony) के रूप में दे।
सामाजिक संदर्भ
यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल माना जा रहा है जहां दांपत्य जीवन में आपसी सम्मान और परिवार के प्रति जिम्मेदारी को लेकर विवाद उत्पन्न होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अदालत ने स्पष्ट संकेत दिया है कि वैवाहिक जीवन में कटुता और अपमानजनक शब्द केवल निजी झगड़ा नहीं, बल्कि मानसिक उत्पीड़न का गंभीर मामला भी बन सकता है।