रायपुर:
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने छत्तीसगढ़ सरकार से आग्रह किया है कि वह उन आदिवासी परिवारों को खेती और आवास के लिए ज़मीन, रोज़गार और स्वास्थ्य कवरेज उपलब्ध कराए, जिन्हें वर्ष 2005 के आसपास नक्सल हिंसा और सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष बढ़ने के कारण राज्य छोड़ना पड़ा था।
आयोग ने साफ कहा है कि “बिना ठोस रणनीति के कोई भी व्यक्ति राज्य लौटने को तैयार नहीं होगा।” इसके साथ ही गृह मंत्रालय और जनजातीय कार्य मंत्रालय से इन विस्थापित परिवारों के लिए विशेष नीति बनाने की सिफारिश भी की है।
ब्रू पुनर्वास योजना का उदाहरण
एनसीएसटी ने छत्तीसगढ़ सरकार को 2018 की ब्रू पुनर्वास योजना का हवाला देते हुए कहा है कि उसी तर्ज पर आदिवासी परिवारों की वापसी और पुनर्वास की योजना बनाई जा सकती है। आयोग ने ज़ोर दिया कि प्रत्येक परिवार को कम से कम पाँच एकड़ ज़मीन, रोज़गार, पीएम आवास योजना के तहत घर, समुदाय प्रमाण पत्र और राशन की गारंटी दी जाए।
न्यूनतम सुविधाएँ सुनिश्चित करने पर बल
आयोग ने कहा कि लौटने वाले परिवारों की बस्तियों में प्राथमिक विद्यालय, स्वास्थ्य केंद्र, आंगनबाड़ी, बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जानी चाहिए।
विस्थापित परिवारों का संघर्ष
2005 में बढ़ते माओवादी संघर्ष के कारण हज़ारों आदिवासी परिवारों को अपना घर-गांव छोड़कर पड़ोसी राज्यों में जाना पड़ा। इनमें से अधिकतर परिवार आज भी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में रह रहे हैं।
- तेलंगाना और आंध्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार ऐसे 3,335 परिवार दर्ज हुए हैं।
- लेकिन वलसा आदिवासुला समैक्या (Valasa Adhivasula Samaikya) नामक संगठन के स्वतंत्र सर्वेक्षण में यह संख्या 9,651 परिवारों तक बताई गई है।
इन विस्थापित परिवारों को अक्सर स्थानीय वन विभागों से संघर्ष झेलना पड़ता है क्योंकि वे अपने मौजूदा ठिकानों पर भी वन अधिकार कानून (FRA) के तहत दावे को लेकर मुश्किलों में रहते हैं।
आयोग की बैठक और आगे की कार्यवाही
8 सितंबर को हुई बैठक में आयोग ने छत्तीसगढ़ सरकार को पुनर्वास पर ठोस योजना बनाने और पड़ोसी राज्यों—आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और महाराष्ट्र—से मिलकर विस्तृत सर्वे कराने के निर्देश दिए।
23 सितंबर को आयोग ने सभी संबंधित राज्यों और केंद्र मंत्रालयों को पत्र लिखकर एक महीने के भीतर एक्शन टेकन रिपोर्ट (ATR) प्रस्तुत करने को कहा है।
मानवीय पहलू
विस्थापित आदिवासी परिवार पिछले लगभग दो दशकों से पहचान, रोज़गार और छत की तलाश में संघर्षरत हैं। उनकी कहानी सिर्फ़ पलायन की नहीं, बल्कि अपने घर-गांव लौटने की उम्मीद से जुड़ी है। एनसीएसटी की पहल से उन्हें यह भरोसा मिला है कि शायद अब उनकी पीढ़ियों को स्थायी ठिकाना मिल सके।
