वॉशिंगटन: यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने अमेरिकी चैनल फॉक्स न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि उन्हें विश्वास है “भारत ज़्यादातर हमारे साथ है”। ज़ेलेंस्की ने उम्मीद जताई कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को रूस से तेल ख़रीदने से रोकने के लिए मना पाएंगे।
ज़ेलेंस्की ने कहा, “हाँ, हमारे बीच ऊर्जा को लेकर कुछ सवाल हैं, लेकिन मुझे लगता है कि राष्ट्रपति ट्रंप इसे यूरोपियनों के साथ मिलकर संभाल सकते हैं और भारत से और मज़बूत रिश्ते बना सकते हैं। मुझे विश्वास है कि हमें हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि भारत हमारे साथ रहे और उनका रुख़ रूसी ऊर्जा सेक्टर से बदल जाए।”
ट्रंप का यूक्रेन पर बदला रुख़
दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप, जो पहले यूक्रेन से रूस को भू-भाग सौंपने की बात करते रहे थे, अब अपने रुख़ से पीछे हटते दिखे। मंगलवार को उन्होंने कहा कि अब उन्हें विश्वास है कि “यूक्रेन अपने पूरे मूल स्वरूप में रूस से जीत सकता है, और शायद उससे भी आगे जा सकता है।”
ट्रंप का यह बयान न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान ज़ेलेंस्की से मुलाक़ात के बाद आया।
भारत पर दबाव क्यों?
अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह रूस से कच्चे तेल की खरीद कम करे। भारत का तर्क है कि उसे अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और आर्थिक स्थिरता को देखते हुए सस्ता तेल खरीदने का विकल्प खुला रखना होगा। वहीं यूक्रेन और पश्चिमी देशों का कहना है कि रूस से तेल की खरीद उसकी युद्ध मशीनरी को आर्थिक बल देती है।
कहानी का मानवीय पहलू
ज़ेलेंस्की का यह बयान ऐसे समय आया है जब यूक्रेन में युद्ध जारी है और लाखों लोग विस्थापित हो चुके हैं। युद्ध की मार झेल रहे देश के राष्ट्रपति का यह कहना कि भारत “हमारे साथ है”, उनके लिए आशा और सहयोग की किरण है। वहीं भारत के लिए यह कूटनीतिक संतुलन का कठिन समय है—एक तरफ़ रूस से पुराने रिश्ते और सस्ते ऊर्जा स्रोत, दूसरी ओर अमेरिका और यूरोप से बढ़ता दबाव।
निष्कर्ष
ट्रंप और ज़ेलेंस्की की मुलाक़ात ने एक नया संदेश दिया है—अमेरिका अब यूक्रेन की जीत को संभव मान रहा है। वहीं भारत पर निगाहें टिकी हैं कि वह आने वाले महीनों में अपने ऊर्जा समीकरण और कूटनीतिक संतुलन को किस तरह साधता है।
