दंतेवाड़ा में 71 नक्सलियों ने हथियार डाले, 21 महिलाएँ और 3 नाबालिग भी शामिल

दंतेवाड़ा, 24 सितंबर 2025/
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग से नक्सल हिंसा के खिलाफ बड़ी खबर सामने आई है। दंतेवाड़ा ज़िले में 71 नक्सलियों ने पुलिस और सीआरपीएफ अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण किया। इनमें 21 महिलाएँ और तीन नाबालिग (दो लड़कियाँ और एक लड़का) भी शामिल हैं। आत्मसमर्पण करने वालों में से 30 नक्सलियों पर कुल 64 लाख रुपये का इनाम घोषित था

दंतेवाड़ा एसपी गौरव राय ने बताया कि नक्सलियों ने खुद को “** खोखली विचारधारा **” से मोहभंग और सरकार की पुनर्वास योजनाओं से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण किया है। राज्य सरकार की नई समर्पण और पुनर्वास नीति, पुलिस की लोन वर्राटू और पूना मर्गेम मुहिम ने इनकी सोच बदली और उन्हें मुख्यधारा से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।

सौंपे गए नक्सलियों में बमन मदकम (30) और मांकी उर्फ सामिला मंडावी (20) पर 8-8 लाख का इनाम था। वहीं शमीला उर्फ सोमली कावासी (25), गंगी उर्फ रोहनी बर्से (25), देवे उर्फ कविता मदवी (25) और संतोष मंडावी (30) पर 5-5 लाख रुपये का इनाम घोषित था। इसके अलावा एक नक्सली पर 3 लाख, छह पर 2-2 लाख, नौ पर 1-1 लाख और आठ पर 50-50 हजार रुपये का इनाम था।

एसपी राय के अनुसार, बमन, शमीला, गंगी और देवे कई हमलों में सुरक्षा बलों पर हमले में शामिल रहे हैं। अन्य नक्सलियों की भूमिका सड़क काटने, पेड़ गिराने, बैनर-पोस्टर लगाने और प्रचार-प्रसार तक सीमित रही।

जन-जन तक पहुँची ‘लोन वर्राटू’ मुहिम
स्थानीय गोंडी बोली में लोन वर्राटू का अर्थ है – “अपने गाँव/घर लौट आओ।” इस अभियान के तहत जून 2020 से अब तक 1,113 नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जिनमें से 297 पर इनाम घोषित था। आत्मसमर्पण करने वाले सभी नक्सलियों को पुलिस ने तुरंत 50,000 रुपये की सहायता राशि प्रदान की और आगे सरकार की नीति के तहत पुनर्वास की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

बड़े नेताओं के मारे जाने से गहरा असर
सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि नक्सलियों की हाल की हार ने संगठन की रीढ़ तोड़ दी है। बीते सोमवार को नारायणपुर ज़िले के अबूझमाड़ क्षेत्र में पुलिस और सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में नक्सली संगठन की केंद्रीय समिति के दो बड़े नेताओं राजू दादा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी (63) और कोसा दादा उर्फ कादरी सत्यनारायण रेड्डी (67) को मार गिराया था। दोनों पर 1.80 करोड़ रुपये का इनाम घोषित था। ये दोनों संगठन की रणनीति और सैन्य गतिविधियों को संचालित करते थे।

विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार आत्मसमर्पण और शीर्ष नेतृत्व की मौत ने बस्तर में नक्सलवाद की जड़ों को हिला दिया है। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली अब शिक्षा, रोज़गार और शांति से जीवन जीने की नई राह पर चलने के लिए तैयार हैं।

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