400 नई गाड़ियाँ दो साल से खड़ी रहीं बेकार, हाईकोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

रायपुर, 24 सितंबर 2025/
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रदेश पुलिस के डायल-112 सेवा के लिए खरीदी गई करीब 400 गाड़ियों के दो साल से अधिक समय तक बेकार खड़ी रहने के मामले में गंभीर रुख अपनाया है। एक हिंदी दैनिक में प्रकाशित रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कोर्ट ने इस मुद्दे को “प्रशासनिक लापरवाही और वित्तीय नुकसान” की संज्ञा दी है।

रिपोर्ट के अनुसार, 40 करोड़ रुपये की लागत से खरीदी गई इन गाड़ियों का लंबे समय तक उपयोग नहीं किया गया, जिससे उनके पुर्जों को भारी नुकसान पहुँचा। अब प्रत्येक वाहन पर लगभग 50,000 रुपये की मरम्मत और सर्विसिंग का अतिरिक्त खर्च आ रहा है। इतना ही नहीं, गाड़ियों की सामान्य उम्र 10 साल होती है, लेकिन लंबे समय तक खड़ी रहने से यह घटकर केवल 8 साल रह गई है।

इस बीच, पुलिस अधिकारी पुराने और खराब हो चुके वाहनों को अपनी निजी लागत से चलाने के लिए मजबूर रहे, जबकि नई गाड़ियाँ थाने और पुलिस लाइन में खड़ी-खड़ी खराब होती रहीं।

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की—
“यह स्थिति निविदा प्रक्रिया और एजेंसी चयन में निर्णयहीनता के कारण बनी है, जिससे प्रशासनिक देरी, वित्तीय बोझ और पुलिस कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न हुई है।”

रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि अप्रैल 2025 में पुलिस स्टेशनों के लिए 325 नई गाड़ियाँ खरीदी गईं, लेकिन उन्हें तैनात करने की बजाय मुख्यालय ने पुराने वाहनों की मरम्मत का आदेश दिया और नई गाड़ियाँ फिर से पार्क कर दी गईं।

हाईकोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए पुलिस महानिदेशक (DGP) को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस हलफनामे में निम्न बिंदुओं का उल्लेख करने को कहा गया है—

  • नई गाड़ियाँ खरीदे जाने के बावजूद उन्हें बेकार क्यों रखा गया?
  • निविदा और एजेंसी चयन में देरी क्यों हुई?
  • किन प्रशासनिक निर्णयों से यह वित्तीय नुकसान और संचालनगत असुविधा उत्पन्न हुई?
  • स्थिति सुधारने, वाहनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित करने और भविष्य में इस तरह की लापरवाही रोकने के लिए अब तक कौन-से कदम उठाए गए या उठाए जा रहे हैं?

हाईकोर्ट की सख्ती से साफ संकेत मिलता है कि इस मामले में न केवल करोड़ों का नुकसान हुआ है बल्कि कानून-व्यवस्था की कार्यक्षमता पर भी सीधा असर पड़ा है। आम नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा के लिए खरीदी गई गाड़ियाँ अगर सालों तक बेकार खड़ी रहें तो यह शासन और पुलिस तंत्र दोनों की जवाबदेही पर सवाल खड़े करती है।