नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े न्यायालय ने छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नागरिक आपूर्ति निगम (एनएएन) घोटाले में बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईएएस अधिकारी अनिल टुटेजा और आलोक शुक्ला को मिली अग्रिम जमानत को रद्द करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) को उन्हें चार सप्ताह की कस्टडी में लेने की अनुमति दी है।
जस्टिस एम एम सुंधरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आदेश दिया कि दोनों अधिकारियों को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करना होगा। अदालत ने साफ कहा कि टुटेजा और शुक्ला को ईडी की जांच में पूरा सहयोग करना होगा ताकि जांच पूरी कर अदालत में शिकायत दर्ज की जा सके।
📌 घोटाले की पृष्ठभूमि
फरवरी 2015 में एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) और आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने नागरिक आपूर्ति निगम के कार्यालयों पर छापा मारकर ₹3.64 करोड़ की अवैध नकदी बरामद की थी। जांच में पाया गया कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ है। बरामद चावल और नमक के नमूने घटिया गुणवत्ता के पाए गए जो मानव उपभोग के योग्य नहीं थे।
अनिल टुटेजा उस समय एनएएन के अध्यक्ष और आलोक शुक्ला प्रबंध निदेशक थे। ईडी ने 2019 में इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया। एजेंसी का दावा है कि कुछ प्रभावशाली लोग न्यायिक राहत पाने के लिए न्यायपालिका से संपर्क में थे, जिसके चलते इस मामले में जमानतें मिलीं।
📌 सुप्रीम कोर्ट का रुख
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इतने बड़े घोटाले में जांच एजेंसी को निष्पक्ष और ठोस तरीके से काम करने का अवसर मिलना चाहिए। अदालत ने कहा कि “हमें कोई संकोच नहीं कि अग्रिम जमानत रद्द की जाए और ईडी को जांच पूरी करने दी जाए।”
📌 स्थानीय असर
इस फैसले से छत्तीसगढ़ में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। यह मामला हमेशा से राज्य की राजनीति और प्रशासनिक तंत्र पर गहरे सवाल उठाता रहा है। आम नागरिकों के बीच भी चर्चा है कि आखिर गरीबों के लिए बनी योजना में इतना बड़ा खेल कैसे हुआ।
