रायगढ़/रायपुर। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में स्थानीय ग्रामीण इन दिनों आक्रोशित हैं। वजह है सरकार का वह फैसला, जिसके तहत आदानी पावर समूह को महज ₹1 सालाना किराये पर जमीन लीज पर दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि इस फैसले से वे न केवल अपनी जमीन और घर से बेदखल हो रहे हैं, बल्कि उनके जीवन और पर्यावरण पर भी गहरा संकट मंडरा रहा है।
बेदखली और जमीन का दर्द
गांव के बुजुर्ग किसान बताते हैं कि उनकी पुश्तैनी जमीन बिना उचित सहमति के ले ली गई। कई जगह ग्राम सभा की अनुमति लिए बिना या जाली दस्तावेज़ों के आधार पर अधिग्रहण किया गया। नतीजा यह हुआ कि खेती-किसानी और रोज़गार दोनों छिन गए।
पर्यावरण का विनाश
रायगढ़ और आसपास के इलाकों में पावर प्रोजेक्ट्स के लिए हजारों पेड़ काट दिए गए। इससे जंगल पर निर्भर आदिवासी समुदायों की आजीविका, पानी के स्रोत और पारंपरिक जीवनशैली खतरे में पड़ गई है। ग्रामीण कहते हैं, “जंगल हमारी मां है, इसे काटकर हमें जीवन से वंचित किया जा रहा है।”
प्रदूषण और स्वास्थ्य संकट
कोयला आधारित पावर प्लांट के विस्तार से इलाके में फ्लाई ऐश, जहरीले धुएं और प्रदूषण ने हालात बिगाड़ दिए हैं। नदियाँ दूषित हो रही हैं, खेत बंजर हो रहे हैं और लोग सांस व त्वचा की बीमारियों से जूझ रहे हैं।
वादे अधूरे, भरोसा टूटा
स्थानीय विकास, रोज़गार, स्वास्थ्य सुविधा और बुनियादी ढांचे का वादा कंपनियों और सरकार ने पहले किया था, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि इनमें से ज्यादातर वादे कभी पूरे नहीं हुए। यही कारण है कि लोगों में गहरा अविश्वास और गुस्सा पनप रहा है।
विरोध पर दमन
जब ग्रामीण और कार्यकर्ता विरोध करने के लिए आगे आए, तो कई जगह गिरफ्तारियां और बाधाएं सामने आईं। इससे आंदोलनकारियों का आक्रोश और तेज हो गया।
ग्रामीणों की मांग
लोग अब साफ कह रहे हैं—“हमें उचित पुनर्वास चाहिए, रोजगार और शिक्षा चाहिए, और सबसे बढ़कर हमारे जंगल, जमीन और जल पर हमारा हक़ कायम रहना चाहिए।”
छत्तीसगढ़ में यह आंदोलन अब केवल जमीन का सवाल नहीं रह गया है, बल्कि यह अस्तित्व और अधिकारों की लड़ाई बन गया है।
