नई दिल्ली। बीते 11 सालों में भारत सरकार पर कर्ज का बोझ तेजी से बढ़ा है। वित्तीय वर्ष 2013-14 में केंद्र सरकार का कुल कर्ज लगभग 56 लाख करोड़ रुपये था। वहीं, 2025 तक यह आंकड़ा तीन गुना बढ़कर करीब 180 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
जानकारों के अनुसार, कर्ज में यह उछाल मुख्यतः बुनियादी ढांचे में निवेश, सामाजिक योजनाओं के लिए बढ़ा खर्च और कोरोना महामारी के दौरान अर्थव्यवस्था को संभालने के प्रयासों के कारण हुआ।
2024-25 की स्थिति
वित्त मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट बताती है कि मार्च 2024 तक भारत सरकार का कुल कर्ज 168.72 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें से लगभग 163 लाख करोड़ आंतरिक (देश के भीतर लिया गया कर्ज) और करीब 5.37 लाख करोड़ बाहरी (विदेशी स्रोतों से लिया गया कर्ज) था।
आम जनता पर असर
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का कर्ज सीधे आम जनता पर बोझ के रूप में नहीं आता, लेकिन इसका असर कराधान, महंगाई और विकास योजनाओं की प्राथमिकताओं पर दिखता है।
नौकरीपेशा युवा ने कहा, “हम हर साल बजट से राहत की उम्मीद करते हैं, लेकिन सरकार पर बढ़ता कर्ज देखकर लगता है कि आने वाले समय में टैक्स और महंगाई से ही इसकी भरपाई होगी।”
विपक्ष के सवाल
विपक्षी दल लगातार मोदी सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह “ऋण के सहारे विकास” का दावा कर रही है। हालांकि, सरकार का तर्क है कि बढ़ते कर्ज के बावजूद देश की Debt to GDP Ratio अभी भी सुरक्षित दायरे में है।
