नई दिल्ली, 05 सितम्बर 2025।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आज सोशल मीडिया पोस्ट में भारत और रूस की चीन के साथ बढ़ती नज़दीकी पर तंज कसते हुए कहा कि “लगता है हमने भारत और रूस को सबसे गहरे, अंधेरे चीन के हाथों खो दिया है।” उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में तीनों देशों को “लंबे और समृद्ध भविष्य” की शुभकामनाएँ भी दीं।
यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब कुछ ही दिन पहले चीन के तियानजिन शहर में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ऊर्जा से लेकर सुरक्षा तक कई अहम मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।
ट्रंप का यह बयान अब तक का सबसे तीखा सार्वजनिक स्वीकार है कि नई दिल्ली, मास्को और बीजिंग के रिश्ते गहराते जा रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटनाक्रम अमेरिका की भारत नीति के लिए एक बड़ा झटका है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने सात साल बाद चीन का दौरा किया, जो दोनों देशों के बीच 2020 की गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प जैसी पुरानी तनावपूर्ण यादों के बावजूद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। मोदी ने पुतिन और शी दोनों से मुलाकात कर यह संदेश दिया कि भारत किसी एक गुट का हिस्सा बनने के बजाय अपनी “रणनीतिक स्वायत्तता” को प्राथमिकता देगा।
दूसरी ओर, ट्रंप ने अपने कार्यकाल में भारत पर कुल 50% तक के कड़े शुल्क लगाए हैं— जिनमें 25% सामान्य शुल्क और 25% अतिरिक्त शुल्क शामिल हैं, खासतौर पर रूस से आयातित कच्चे तेल पर। ये अमेरिका के किसी भी साझेदार देश पर लगाए गए सबसे ऊँचे शुल्कों में गिने जाते हैं।
ट्रंप का आरोप है कि भारत रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित कर रहा है। वहीं, भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर का तर्क है कि अमेरिका का यह आरोप “दोहरा मापदंड” है, क्योंकि यूरोप और चीन अब भी रूस से ऊर्जा का आयात कर रहे हैं।
ट्रंप ने यह भी दावा किया कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार बेहद असंतुलित है। “हम भारत के साथ बहुत कम कारोबार करते हैं, लेकिन भारत हमसे बहुत ज़्यादा लेता है। यह पूरी तरह एकतरफ़ा और विनाशकारी समझौता रहा है,” उन्होंने हाल ही में कहा।
2019 के “हाउडी मोदी” कार्यक्रम में मोदी और ट्रंप की जोड़ी की गर्मजोशी याद है, मगर मौजूदा हालात बताते हैं कि रिश्ते अब ठंडेपन की ओर बढ़ रहे हैं। भारत, रूस और चीन की बढ़ती साझेदारी और अमेरिका के साथ व्यापारिक विवाद—आने वाले समय में भू-राजनीतिक संतुलन को नया मोड़ दे सकते हैं।
