नई दिल्ली, 30 अगस्त 2025।
भाजपा ने वर्षों से चुनावी मंचों पर गोमांस और मांस निर्यात का मुद्दा उठाकर वोटरों की धार्मिक भावनाओं को साधने की कोशिश की है। अमित शाह जैसे बड़े नेताओं ने यहां तक कहा था कि वे उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बूचड़खाने बंद करेंगे। चुनावी घोषणापत्रों में भी इस वादे को जगह मिली।
लेकिन हकीकत कुछ और है। भारत आज भी दुनिया के सबसे बड़े भैंस का मांस (काराबीफ़) निर्यातकों में गिना जाता है। 2024-25 में ही भारत ने लगभग 1.65 मिलियन मीट्रिक टन भैंस का मांस निर्यात किया और करीब 3.9 अरब डॉलर की कमाई की। यह मांस मुख्य रूप से वियतनाम, मलेशिया, इराक, सऊदी अरब और अफ्रीकी देशों को भेजा जाता है।
क्यों जारी है निर्यात?
दरअसल, भारत में गाय के मांस पर तो लगभग हर राज्य में प्रतिबंध है, लेकिन भैंस के मांस को धार्मिक दृष्टि से आपत्तिजनक नहीं माना जाता। यही वजह है कि इसका निर्यात कानूनी तौर पर मान्य है। यही नहीं, इस उद्योग से लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी जुड़ी है—पशुपालक से लेकर प्रोसेसिंग यूनिट और बंदरगाह तक।
सरकार भी इसे पूरी तरह रोकने से हिचकती है, क्योंकि इससे अरबों डॉलर का विदेशी राजस्व आता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान मिलता है। हालांकि, सख़्त नियमों और निगरानी से व्यापार को नियंत्रित किया गया है।
वोट और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है—एक ओर हिंदू आस्थाओं को साधना और दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था को संभालना। यही कारण है कि पार्टी ने बूचड़खानों पर कार्रवाई तो की, लेकिन भैंस का मांस निर्यात पूरी तरह नहीं रोका।
कहा जा सकता है कि भारत की राजनीति और अर्थव्यवस्था, दोनों ही इस मुद्दे पर दोधारी तलवार की तरह हैं—जहां आस्था और रोज़गार दोनों को साधना अनिवार्य है।
