दंतेवाड़ा, 28 अगस्त 2025।
छत्तीसगढ़ जब मार्च 2026 तक सशस्त्र नक्सलवाद की पकड़ से बाहर निकलने के रास्ते पर बढ़ रहा है, उसी दौरान दंतेवाड़ा प्रशासन ने बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए एक नई पहल शुरू की है। जिले में ‘बाल मित्र अभियान’ की शुरुआत की गई है, जिसका मकसद स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से शिक्षा की राह पर लाना है।
जिला कलेक्टर कुणाल दुडावत ने बताया कि इस अभियान के तहत गाँवों में शिक्षा केंद्र और ‘बाल मित्र पुस्तकालय’ स्थापित किए जा रहे हैं, जहाँ बच्चों को कहानियों, कविताओं और खेल-खेल में पढ़ाई कराई जाती है। इसके साथ ही खेलकूद और अन्य गतिविधियों के जरिए उनका सर्वांगीण विकास भी किया जा रहा है।
कलेक्टर ने कहा, “हमारा लक्ष्य यह है कि बच्चों को एक दोस्ताना और रचनात्मक वातावरण मिले, ताकि वे सीखने के लिए प्रेरित हों। बाल मित्र स्वयंसेवक बच्चों से जुड़कर उन्हें शिक्षा प्रणाली से जोड़ रहे हैं।”
पिछले वर्ष यह अभियान 65 पंचायतों में संचालित हुआ था और कई बच्चों को पुनः शिक्षा से जोड़ा गया। बाल मित्र स्वयंसेवक प्रतिदिन दो घंटे का सत्र आयोजित करते हैं, जिसमें बच्चों को मूलभूत साक्षरता और गणना कौशल सिखाया जाता है।
इन स्वयंसेवकों को 6,000 रुपये का मानदेय और प्रशिक्षण दिया जाता है, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता और संवाद कौशल भी विकसित होते हैं। यह कार्यक्रम एक तरह का दो वर्षीय फेलोशिप है।
कलेक्टर ने कहा कि इस अभियान का अंतिम लक्ष्य है कि दंतेवाड़ा को “स्कूल ड्रॉपआउट मुक्त जिला” बनाया जाए और 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा जाए।
छात्र-छात्राओं ने भी अपने अनुभव साझा किए।
दीपक नामक छात्रा ने कहा, “मैं यहाँ रोज आती हूँ और नई कहानियाँ सुनती हूँ। पढ़ाई बहुत रोचक तरीके से कराई जाती है।”
छठवीं कक्षा के छात्र डेविड ने कहा, “यहाँ हम वर्णमाला, गिनती, डिक्टेशन और चित्र आधारित कहानियाँ सीखते हैं। साथ ही खेल-खेल में ड्राइंग भी सीखते हैं।”
सुझाता दास ने उत्साह से कहा, “बाल मित्र कक्षा में हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता है। हम खेलते भी हैं और पढ़ाई भी करते हैं। बहुत सारे बच्चे आते हैं और हम सब मिलकर आनंद लेते हैं।”
बाल मित्र स्वयंसेवक मनोज कुमार पवार ने बताया कि कोविड-19 के बाद कई ग्रामीण बच्चे स्कूल से कट गए थे। सर्वे के जरिए ड्रॉपआउट बच्चों की पहचान कर पंचायत की मदद से उन्हें दोबारा स्कूल में दाखिला दिलाया गया। जिन बच्चों के पास आधार या जन्म प्रमाण पत्र नहीं थे, उनके लिए दस्तावेज़ बनवाने की प्रक्रिया भी अभियान के हिस्से के तौर पर चलाई जा रही है।
यह पहल न सिर्फ बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी पहुँचा रही है बल्कि दंतेवाड़ा जैसे नक्सल प्रभावित क्षेत्र में नई उम्मीद और विश्वास की किरण भी जगा रही है।
