नई दिल्ली, 26 अगस्त 2025। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद और धमतरी जिलों के उदंती-सीतानदी बाघ अभयारण्य क्षेत्र से जुड़ी 17 ग्राम सभाओं के प्रतिनिधियों ने जनजातीय कार्य मंत्रालय को पत्र लिखकर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि अभयारण्य प्रशासन उन्हें उनकी पुश्तैनी ज़मीन से जबरन बेदखल कर रहा है और इस दौरान कई कानूनों की खुलेआम अनदेखी की जा रही है।
ग्राम सभा महासंघ ने अपने पत्र में जनजातीय कार्य सचिव विभू नायर समेत वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए लिखा है—
“हमारे पूर्वजों की ज़मीन से हमें जबरन बेदखल किया जा रहा है। यह वनाधिकार कानून 2006, पंचायत अधिनियम 1996, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 और एससी-एसटी अधिनियम 1989 का घोर उल्लंघन है।”
बेदखली और रोज़गार पर संकट
ग्रामीणों का आरोप है कि 2020 से लगातार मनमाने ढंग से बेदखली नोटिस जारी किए जा रहे हैं। सॉरनमाल, इछराडी और दाशपुर जैसे गांवों से परिवारों को बिना प्रक्रिया अपनाए बेदखल भी किया जा चुका है।
ग्रामवासियों ने कहा कि पिछले दो साल से खेती पर रोक लगा दी गई है, जिससे सैकड़ों परिवारों की आजीविका खतरे में पड़ गई है।
“बाघ संरक्षण के नाम पर अधिकारों का हनन”
ग्राम सभाओं ने पत्र में आरोप लगाया कि अभयारण्य प्रबंधन “बाघ संवर्धन कार्यक्रम” के नाम पर बिना ग्राम सभा की सहमति के योजनाएं चला रहा है। यहां तक कि उनके सामुदायिक वन संसाधन क्षेत्रों को पर्यटन के लिए चरागाह में बदलने की गुप्त तैयारी भी की जा रही है।
ग्रामवासियों की अपील
महासंघ ने मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा:
“कृपया हमें हमारी पुश्तैनी ज़मीन से जबरन हटाए जाने की इस गैरकानूनी कार्रवाई को रोकें। हमारे अधिकारों और जैव विविधता दोनों की रक्षा ज़रूरी है।”
गौरतलब है कि उदंती-सीतानदी बाघ अभयारण्य की स्थापना वर्ष 2009 में की गई थी। यह छत्तीसगढ़ के तीन प्रमुख टाइगर रिज़र्व में से एक है और यहां बाघ पुनर्वास कार्यक्रम भी चलाया गया है। परंतु, ग्रामीणों का कहना है कि उनका जंगलों से रिश्ता पीढ़ियों पुराना है और बेदखली से उनकी संस्कृति, आजीविका और अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
