रायपुर, 26 अगस्त 2025।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार, सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी पर नक्सल समर्थक होने का आरोप लगाया है। उनका इशारा 2011 में दिए गए उस ऐतिहासिक फैसले की ओर था, जिसने छत्तीसगढ़ में चल रही सलवा जुडूम और स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स (SPOs) की नियुक्ति की प्रथा को समाप्त कर दिया था।
मामला क्या था?
मामला नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2011) से जुड़ा है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि राज्य सरकार ने नक्सलियों से मुकाबले के लिए आदिवासी युवाओं को हथियारबंद कर स्पेशल पुलिस ऑफिसर (SPO) के रूप में तैनात किया। इससे मासूम ग्रामीणों के हाथों में हथियार आ गए और मानवाधिकार उल्लंघन, हिंसा और बस्तर में नागरिकों की सुरक्षा गंभीर संकट में आ गई।
राज्य सरकार का पक्ष
छत्तीसगढ़ सरकार ने उस समय दलील दी थी कि नक्सलियों से सीधी लड़ाई में इन SPOs की अहम भूमिका है। आदिवासी इलाके के भूगोल और परिस्थितियों को समझने वाले स्थानीय युवक, सुरक्षा बलों के लिए ‘आंख और कान’ की तरह काम करते हैं। सरकार का कहना था कि बिना उनके सहयोग के नक्सलवाद पर काबू पाना कठिन होगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी और उनकी पीठ ने राज्य सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि आदिवासी युवाओं को बंदूक थमाना और उन्हें नक्सलियों से लड़ने के लिए भेजना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 (समानता और जीवन के अधिकार) का उल्लंघन है।
अदालत ने माना कि SPOs की नियुक्ति से कानून-व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ी, हिंसा बढ़ी और मासूमों की जान खतरे में पड़ी।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को आदेश दिया कि सभी SPOs को तत्काल निरस्त किया जाए और इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया। साथ ही, कोर्ट ने सरकार से कहा कि नक्सल समस्या का समाधान केवल सुरक्षा बलों पर नहीं, बल्कि विकास, शिक्षा और संवेदनशील नीतियों के जरिए किया जाए।
आज का राजनीतिक विवाद
अब जब विपक्ष ने जस्टिस रेड्डी को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाया है, भाजपा और विशेषकर अमित शाह का कहना है कि यह फैसला नक्सलवाद के पक्ष में गया था और इससे छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों की लड़ाई कमजोर पड़ी। वहीं विपक्ष का तर्क है कि यह फैसला आदिवासियों के मानवाधिकारों और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए था।
यह विवाद उपराष्ट्रपति चुनाव को और गरमा रहा है, जहाँ अब केवल राजनीति नहीं, बल्कि न्यायपालिका और लोकतांत्रिक मूल्यों पर भी चर्चा हो रही है।
