रायपुर।
कहावत है कि “जंगल की असली खाद है वनपाल का कदम”। छत्तीसगढ़ ने इस कहावत को सच कर दिखाया है। उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व (USTR) से 1800 एकड़ से ज़्यादा अतिक्रमित जंगल भूमि वापस लेकर उसे बहाल किया गया है। यह कदम न केवल जैव विविधता को बचाने और वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आवास बनाने की दिशा में अहम है, बल्कि मानव-वन्यजीव संघर्ष और वनों की कटाई की समस्या को भी कम करेगा।
पिछले 18 सालों से धीरे-धीरे कब्ज़ाए गए इस विशाल इलाके को वापस पाना वन विभाग के लिए आसान नहीं था। लगभग 500 करोड़ रुपये मूल्य की इस ज़मीन को वापस पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। इस दौरान कई बार वनकर्मियों पर हमले तक हुए, लेकिन विभाग डटा रहा।
तकनीक बनी सबसे बड़ा हथियार
इस मिशन का नेतृत्व कर रहे IFS अफसर वरुण जैन, उप संचालक USTR, ने गश्ती खामियों और मानवीय दखल को रोकने के लिए उपग्रह चित्र, ड्रोन मैपिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित रिमोट सेंसिंग पोर्टल का सहारा लिया।
- हैदराबाद स्थित ISRO के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र से 2008–2010 के उपग्रह चित्र लिए गए।
- 2022 में ड्रोन से अतिक्रमण क्षेत्र का नक्शा तैयार किया गया।
- नतीजा यह निकला कि 2012 से 2020 तक बड़े पैमाने पर जंगल काटकर बस्तियां बनाई गई थीं।
अतिक्रमण हटाने का संघर्ष
करीब 300 से अधिक कथित अतिक्रमणकारियों को बेदखल किया गया। सात प्रमुख आवास क्षेत्रों को खाली कराया गया। इस दौरान भारी विरोध और टकराव भी हुए। विभाग ने साफ किया कि ये सभी बस्तियां 2008 के बाद बसी थीं, इसलिए वनाधिकार कानून (FRA) 2005 के तहत इन्हें कोई हक नहीं था।
राज्य के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि
मुख्य वन संरक्षक (PCCF) वी. श्रीनिवास राव ने कहा—
“यह राज्य के लिए असाधारण उपलब्धि है। अतिक्रमण हटाने और तकनीक के प्रयोग से शाकाहारी और मांसाहारी जीवों के लिए नया आवास क्षेत्र बना है। मानवीय संघर्ष कम हुए हैं और मुआवज़े का बोझ भी घटा है।”
लगातार निगरानी जारी
2022 से विभाग ने अपना Google Earth Engine आधारित रिमोट सेंसिंग पोर्टल विकसित कर लिया है। अब हर हफ्ते जंगल की निगरानी, जल संसाधनों का आकलन और अतिक्रमण हॉटस्पॉट की पहचान की जाती है। हाल ही में 60 हेक्टेयर और जंगल मुक्त कर बहाल किया गया है।
संवेदनशील इलाका
गारीबंद और धमतरी जिलों में फैले इस टाइगर रिजर्व में पहले से 110 वैध राजस्व गांव मौजूद हैं। यहां माओवादियों की उपस्थिति और बाहरी अतिक्रमणकारियों की सक्रियता ने चुनौती को और कठिन बना दिया था। बावजूद इसके, वन विभाग ने कड़ा कदम उठाते हुए जंगल को उसका असली हक लौटाया।
