छत्तीसगढ़ में जंगल अधिकार पट्टों का रिकॉर्ड ‘गायब’, 17 महीनों में हजारों दावों का आंकड़ा घटा

रायपुर, 14 अगस्त 2025।
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल इलाकों में बांटे गए हजारों वन अधिकार पट्टों का रिकॉर्ड रहस्यमय तरीके से सरकारी फाइलों से ‘गायब’ हो गया है। आरटीआई के ज़रिये मिली जानकारी के अनुसार, पिछले 17 महीनों में कम से कम तीन जिलों में पट्टों की संख्या में भारी गिरावट दर्ज हुई है, जबकि वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 में एक बार दिए गए पट्टों को वापस लेने का कोई प्रावधान ही नहीं है।

बस्तर में 2,700 से अधिक पट्टे ‘कम’
जनवरी 2024 में बस्तर जिले में 37,958 व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) पट्टे दर्ज थे, लेकिन मई 2025 तक यह संख्या घटकर 35,180 रह गई। इसी तरह, राजनांदगांव में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFRR) पट्टे एक महीने में आधे होकर 40 से 20 हो गए। बीजापुर में भी 299 से घटकर 297 CFRR पट्टे दर्ज रह गए।

‘गलत रिपोर्टिंग’ या सचमुच रद्दीकरण?
राज्य सरकार का कहना है कि यह “ग़लत रिपोर्टिंग” और “मिसकम्युनिकेशन” का नतीजा है, जिसे सुधारकर नए आंकड़े दर्ज किए गए। मगर वन अधिकार विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक गंभीर विसंगति (Anomaly) है, क्योंकि FRA में पट्टे केवल विरासत में ही हस्तांतरित हो सकते हैं और रद्द करने की कोई प्रक्रिया नहीं है।

नक्सल प्रभावित इलाकों में धीमी प्रगति
केंद्र सरकार ने हाल ही में तीन जिलों — बस्तर, दंतेवाड़ा और मोहला-मानपुर — को नक्सलमुक्त घोषित किया था, लेकिन FRA लागू करने की रफ्तार बेहद धीमी रही। बस्तर में जहां IFR दावों की संख्या में 3,000 की गिरावट आई, वहीं दंतेवाड़ा में सिर्फ 55 नए IFR पट्टे जोड़े गए। मोहला-मानपुर में 17 महीनों में एक भी नया IFR पट्टा नहीं दिया गया।

विशेषज्ञों की चेतावनी और रिकॉर्ड की खामियां
विशेषज्ञों का कहना है कि FRA के क्रियान्वयन में रिकॉर्ड-कीपिंग की समस्या पुरानी है। कई बार ऐसे भी मामले सामने आए हैं जहां ग्राम सभा ने आवेदन ही नहीं किया, फिर भी उसके नाम पर पट्टा दर्ज हो गया। इस अव्यवस्था को ठीक करने के लिए केंद्र का धर्ती अबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान 2024 चलाया जा रहा है, जिसके तहत हर राज्य में 300 से अधिक FRA सेल बनाए जा रहे हैं, ताकि सभी रिकॉर्ड को डिजिटल किया जा सके।