तालाब के बीच खड़ा इतिहास: बस्तर का चन्द्रादित्य मंदिर, जहां पत्थरों में बसता है अतीत

दंतेवाड़ा, बस्तर 14 अगस्त 2025।
छत्तीसगढ़ के बस्तर की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक यात्रा में यदि किसी स्थल को नज़रअंदाज़ करना असंभव है, तो वह है बारसूर का चन्द्रादित्य मंदिर। गीदम से लगभग 16 किलोमीटर दूर भोपालपट्टणम मार्ग पर स्थित यह मंदिर अपनी अद्वितीय स्थापत्य कला, शानदार नक्काशी और अनोखे भूगोल के कारण पर्यटकों को खास आकर्षित करता है।

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और 10-11वीं शताब्दी की धरोहर माना जाता है। सबसे अद्भुत बात यह है कि यह एक विशाल तालाब के बीच स्थित है—चारों ओर पानी और बीच में गर्व से खड़ा मंदिर, मानो समय ने इसे इतिहास के पन्नों से उठाकर आज के दौर में रख दिया हो।

कला का अनुपम नमूना
मंदिर की दीवारों पर भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की बारीक नक्काशी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। आधा शेर और आधा मानव रूप वाली यह मूर्ति इतनी जीवंत है कि देखने वाला पल भर को 1000 साल पीछे चला जाता है। वहीं, मंदिर के एक हिस्से में उस समय की कामुक मूर्तियां भी मौजूद हैं, जो प्राचीन भारतीय कला की खुले दृष्टिकोण और शिल्प कौशल को बखूबी दर्शाती हैं।

संरक्षण और सुगमता
आज मंदिर के चारों ओर मजबूत बाड़ा बना दिया गया है और हाल ही में इसका संरक्षण कार्य भी हुआ है। पत्थरों की चमक और दीवारों की मजबूती यह बताती है कि समय भले ही आगे बढ़ गया हो, पर यह धरोहर अब भी उतनी ही भव्य है। सड़क, रेल और हवाई मार्ग से अच्छी कनेक्टिविटी के कारण यहां पहुंचना अब बेहद आसान हो गया है, जिससे दूर-दराज़ के पर्यटक भी इसकी सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।

चन्द्रादित्य मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि वह जीवंत इतिहास है जो बस्तर की सांस्कृतिक आत्मा को समझने का अवसर देता है।